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Awadhi Sahitya-Kosh

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श्रीकान्त शर्मा ‘कान्ह’
ये सीतापुर जनपद के ग्राम रेवान में सन् १९११ में जनमें थे और बिसवाँ को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। वहीं ‘कान्ह कुटीर’ इनका आवास स्थल है। इन्होंने अपना जीवनयापन कांजी हाउस के मुंशी के रूप में किया है। इनकी अवधी की रचनायें इस प्रकार हैं। ‘मवेशी खाने के मुंशी- द्याखौ, तौ, चीन, कांग्रेस, गांधी जी इत्यादि। ये एक कुशल सामाजिक कार्यकर्ता और राष्ट्रीय भावना के व्यक्ति हैं। कांग्रेस संगठन से भी जुड़े। इनकी रचनाओं में समाजिक, राजनीतिक विसंगतियों, विकृतियों पर कटु प्रहार हुआ है।

श्री दुर्गाविजय
यह हरिपाल सिंह कृत अवधी ग्रंथ है। इसका प्रकाशन सन् १८९८ में नवल किशोर प्रेस, लखनऊ द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस ग्रंथ में दो खण्ड हैं। प्रथम खंड में देवी द्वारा महिषासुर-वध का वर्णन है तथा दूसरे में रक्तबीज एवं शंभु-निशुंभ की पौराणिक कथा है। इस ग्रंथ की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक अवधी है।

श्रीधर पाठक
इन्का जन्म १० दिसम्बर सन् १८८९ में जनपद आगरा के जोन्धरी नामक गाँव में हुआ था। पाठक जी को अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, अंग्रेजी तथा संस्कृत का विशेष ज्ञान था। नौकरी करते हुए इन्हें कश्मीर एवं नैनीताल में रहने का संयोग प्राप्त हुआ, जिससे प्रकृति निरीक्षण का सुअवसर उपलब्ध हुआ। इनकी ‘देहरादून’, ‘मंसूरी’ नामक कविताएँ बड़ी उत्कृष्ट हैं, जिनमें बरवै छंद का प्रयोग हुआ है। सन् १९२८ में इनका स्वर्गवास हो गया।

श्रीधर शुक्ल ‘स्वतन्त्र’
१० अक्टूबर सन् १९३९ ई. को सीतापुर जनपद के अल्लीपुर बंडिया ग्राम में इनका जन्म हुआ था। जैसा कि इनके उपनाम से स्पष्ट है इनकी प्रकृति भी स्वतन्त्र हैं। ’स्वतंत्र जी’ गन्ना विभाग में कार्यरत हैं। इन्होंने खड़ी बोली और अवधी दोनों में ही काव्य रचनायें की हैं। इनकी अवधी कविताओं में पूर्वीपन है साथ ही भोजपुरी शब्दों का बाहुल्य भी। लाक्षणिक प्रयोग भी है। ‘नौकरशाही’ ‘मोरार जी देसाई’ ‘राजनारायण’ आदि इनकी रचनायें हैं। ये एक निबंधकार भी हैं। इनका व्यक्तित्व एक सामाजिक कार्यकर्ता और कवि का रहा हैं।

श्रीनारायण अग्निहोत्री ‘सनकी’
हिन्दी गोष्ठियों एवं सम्मेलनों में ‘सनकी’ उपनाम से प्रसिद्ध हास्य और व्यंग्य के कवि अग्निहोत्री जी का जन्म कानपुर जनपद के नर्वल नामक ग्राम में ८ मार्च सन् १९३३ को हुआ था। इनके पिता श्री गौरीशंकर अग्निहोत्री का इनकी ढाई वर्ष की अवस्था में ही स्वर्गवास हो गया था। माताजी ने अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए इनको शिक्षित कर शिक्षक बनाया, जिससे शिक्षक रूप में लखनऊ जनपद के चौक स्थित कालीचरण इंटर कालेज में अध्यापन कार्य किया। जयपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘गुदगुदी’ में इनके हास्य-व्यंग्य सम्बन्धी लेख प्रकाशित हुए। इनके लेखों एवं कविताओं की संख्या लगभग १५० है।

श्रीनारायण मिश्र
मिश्रजी का जन्म कसहर जिला प्रतापगढ़ में सन् १९३६ में हुआ। बाल्यकाल में ही इनके मन में काव्य के प्रति रुचि जाग्रत हो गई थी। इन्होंने विषम परिस्थितियों में रहते हुए इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की, फिर कला अध्यापक के रूप में जीविकोपार्जन आरम्‍ंअ किया। खेतिहर की चिन्ता मिश्रजी की कविताओं का केन्द्रीय विषय है। मिश्रजी ने बिरहा, कहरवा, मुक्तक और गीत का अधिक प्रयोग किया है। इनकी भाषा पूर्वी अवधी है जिस पर इनकी शिक्षा और नगरीय संस्कारों की छाप है।

श्रीप्रकाश
ये बच्चू लाल महाविद्यालय, बिसवाँ सीतापुर के हिन्दी विभाग में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने अवधी भाषा में ढेर सारी कविताएँ लिखी हैं।

श्रीरामचरितमानस
यह जोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित विश्वविश्रुत अवधी महाकाव्य है। इसमें रामकथा को अत्यंत सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया गया है। यह महाकाव्य मात्र कथा नहीं है, बल्कि इसमें नीति, आचरण एवं राजनीति सम्बन्धी निर्देश समाहित हैं। इसका प्रणयन १७ शदी के चतुर्थ दशक में हुआ था। इस ग्रंथ में दोहा, चौपाई, सोरठा, सवैया, अनुष्टुप आदि छंदों एवं अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।

श्री रामचरितायन्
यह शीतला सिंह गहरवार द्वारा रचित अवधी प्रबन्ध-काव्य है। दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है।

श्रीराम शुक्ल ‘कंचना’
ये अमीनाबाद, लखनऊ के निवासी हैं। ‘बसन्त ऋतु आय गयी’ आदि कविताओं के माध्यम से अवधी भाषा के प्रति अपना अनुराग इन्होंने प्रकट किया है।


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