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Awadhi Sahitya-Kosh

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राम रसिकावली
यह रसिक रामभक्तों का परिचय प्रस्तुत करने वाला एक अवधी ग्रंथ है। इसके प्रणेता रीवाँ नरेश महाराज रघुराज सिंह जी हैं।

रामलखन सिंह
ये प्रतापगढ़ जनपद के ‘लखापुर नाक ग्राम के निवासी हैं। एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर सम्प्रति अध्यापन कार्य कर रहे हैं। अवधी गीत के अतिरिक्त खड़ी बोली में भी इन्होंने गीत लिखे हैं। कृषक-जीवन को अधार मानकर इन्होंने गीत अधिक लिखे है।

रामलला नहछू
यह तुलसीदास कृत रचना है। इसके दो पाठ मिलते हैं। एक में ४० पद हैं तथा दूसरे में केवल २६। ४० पद वाली प्रति प्रकाशित है। विद्वानों ने इसका रचनाकाल सं. १६१६ माना है। ‘नहछू’ नाखून काटने की एक रीति विशेष है, जो विवाह या यज्ञोपवीत संस्कार के पहले वर के नख काट कर सम्पन्न की जाती हैं। इस ग्रन्थ की रचना सोहर छन्दो में की गई है। इसकी भाषा अवधी हैं। इसमें भगवान राम के नहछू का वर्णन किया गया है।

रामविलास मिश्र
ये रायबरेली के निवासी एवं अल्पख्यात कवि हैं।

रामशंकर शर्मा ‘प्राचीन’
रचना- ‘खादी चुनरिया’ के माध्यम से ये अपना राष्ट्रानुराग अभिव्यक्त करने वाले कवि हैं।

रामशरण सिंह
ये प्रतापगढ़ जनपद के खटवारा नामक गाँव के निवासी हैं। मिडिल स्कूल तक शिक्षा प्राप्त कर निकटवर्ती प्राथमिक विद्यालय, डोमपुर में कुछ सपय तक अध्यापन कार्य किया। कुछ समय उपरान्त ये रीवाँ चले आए और वहीं राजकीय माडल बेसिक स्कूल में अध्यापक हो गए। बाद में एम.ए भी कर लिया। साहित्य और कला के प्रति इनकी अभिरुचि बाल्यकाल से ही थी और इसका बहुत कुछ श्रेय इनके पिताजी को है, जिन्हें सूर, कबीर तथा तुलसी के सैकड़ों पद कंठस्थ हैं। ‘गाँव की धरती’ इनकी प्रकाशित रचना है। इस संग्रह के अधिकांश गीत गाँव के किसान तथा वहाँ की प्रकृति में सम्बद्ध हैं। इनके काव्य में प्रकृति का अनमोल चित्र अंकित हुआ हैं। शरण जी मानवतावादी कवि हैं। इन्होंने प्रेम और सौहार्दमूलक भावना के विकास से ही समाज और विश्व का कल्याण संभव कहा है। इनकी काव्य भाषा पूर्वी अवधी है। इनकी भाषा पर तुलसी की भाषा का व्यापक प्रभाव पड़ा है।

रामसागर शुक्‍ल ‘सागर’
सागर जी सीतापुर जनपद के अशोकपुर बनियामऊ के निवासी हैं। ‘होरी’ नामक रचना इन्होंने अवधी भाषा में कई खण्डों में प्रस्तुत की है, जो अत्यन्त उच्चकोटि की है।

राम सुन्दर
बस्ती जनपद के राघूपुर कस्बा के निवासी ये अवधी रचनाकार सेवी हैं। ये अवधी साहित्य सृजन में उत्साहपूर्वक संलग्न है।

रामस्वयंवर
यह रीवाँ नरेश महाराज रघुराज सिंह द्वारा प्रणीत अवधी प्रबन्ध-काव्य है। इस ग्रंथ राम-सीता-विवाह का वर्णन है। इसमें अवधी एवं बघेली का मिला-जुला रूप है। इसमें सबसे अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि सीता के नाम पर स्वयंवर न रखकर राम के नाम पर स्वयंवर पर आघृत नामकरण किया गया है।

रामस्वरूप
१८वीं शताब्दी में जन्में रामस्वरूप जी सन्त चरनदास जी के शिष्य थे। इन्होंने ‘गुरुभक्ति प्रकश’ नामक अवधी ग्रन्थ का प्रणयन किया, जिसमें इन्होंने गुरू चरनदास जी के चरित्र का उल्लेख किया है।


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