इटियाथोक, गोण्डा में जन्में श्रीवास्तव जी अवधी के भक्त कवि हैं। इन्होंने अपनी श्रद्धा अवधी भाषा के प्रति अनन्य भाव से अभिव्यक्त की हैं।
रमेश रंजन मिश्र
व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी मिश्र जी लखनऊ क्षेत्र के निवासी हैं। इन्होने अपने साहित्य सृजन में अवध को विशेष स्थान देकर उसकी गरिमा को बढ़ाया है।
रमैनी
यह छंद विशेष है, जिसका प्रयोग संत कवियों ने (विशेषतः कबीर ने) किया है। इनकी संख्या ८४ है। इसे रामायण का देशज रूप कहा जा सकता है। इसकी भाषा में पर्याप्त अवधी रूप है। रमैनियों में कबीर ने मुख्यतः माया का निरूपण किया है, अतएव इसकी व्युत्पत्ति ’माया से रमण’ करने से संबद्ध मानी जाती हैं। माया का तिरस्कार और ईश्वर की पहचान इसमें देखने को मिली है।
रवीन्द्रकुमार श्रीवास्तव
इनका जीवन परिचय तो उपलब्ध नहीं है, किंतु ‘सुख अंगार झरहूँ’ नामक अवधी रचना प्रस्तुत कर इन्होंने अपना अवधी अनुराग प्रकट कर दिया है।
रवीन्द्र प्रकाश ‘भ्रमर’
रचना-‘सीमा हेरि रही’। परिचयात्मक विवरण अनुपलब्ध है।
रसरतन
यह कवि पुहकर द्वारा रचित हिन्दू प्रेमाख्यान है। इसकी रचना सं. १६७५ में हुई। इस ग्रंथ में भाषा के रूप में पश्चिमी अवधी प्रयुक्त हुई। शब्द-चयन, भाषा आदि ‘मानस’ के समकक्ष प्रतीत होती है।
रस विलास
कवि बेनी भट्ट द्वारा रचित यह ग्रंथ खूबचंद (बैसवाड़ा) की प्रेरणा से लिखा गया है। खूबचंद का वंश वर्णन भी इसमें है। इस ग्रंथ में सभी रसों का सुन्दर समावेश है। सवैया, दोहा आदि छंदों का प्रयोग है। भाषा ब्रजावधी है।
रसिकेश जी
रचना- ’गांधी चालीसा’ शैली- दोहा-चौपाई। विशेष विवरण अप्राप्त।
रहीम
‘बरवै नायिका भेद’ नामक अवधी काव्य के रचयिता अब्दुर्रहीम खाँ खानखाना अकबर के नवरत्नों में विख्यात हैं। ये तुलसी के समकालीन थे। इनका जन्म सन् १५५६ ई. में हुआ था। अकबर ने इन्हें पाटन की जागीर प्रदान की थी, फिर इन्हें गुजरात की सूबेदारी भी। ‘खानखाना’, पंचहज़ारी, वकील आदि उपाधियाँ इनके वैभव और गौरव की साक्षी हैं। ‘बरवै नायिका भेद’ अवधी में नायिका भेद का सर्वोत्तम ग्रन्थ है। इसमें विभिन्न नायिकाओं के उदाहरण हैं। रहीम ने बरवै छंदों में गोपी-विरह का वर्णन भी किया है, जो स्वतंत्र रूप से विचारणीय है।
रहीम (शेख)
शेख रहीम अरवल नगर के निवासी थे। इनके पिता का नाम यार मोहम्मद था। सं. १९१५ में इन्होंने ‘भाषा-प्रेमरस’ नामक अवधी काव्य का सृजन किया।