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Awadhi Sahitya-Kosh

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ब्रजकिशोर पाण्डेय ‘ब्रजनन्दन’
इनका जन्म आसाढ़ बदी एकादशी सम्वत् १९४९ वि. को, ग्राम भनवामऊ, जिला रायबरेली में हुआ था, और निधन १ जनवरी सन् १९८१ में हुआ था। इनके पूर्वज गोगाँसों, रायबरेली नामक गाँव के निवासी थे। इसलिए इन्हें गोगाँसों के पाण्डेय कहा जाता है। इनके पिता का नाम रामाधीन पाण्डेय था। भनुवामऊ गाँव राणा बेनी माधव ने इनके पूर्वजों को दान में दिया था। विद्यालयीय शिक्षा अधिक न मिलने के बावजूद इन्होंने स्वाध्याय के बल पर हिन्दी, उर्दू भाषा की विशेष योग्यता प्राप्त की। आरम्भ में इन्होंने ‘कोर्ट आफ वार्ड’ में नौकरी की, तदुपरांत सन् १९१६ में काशी नरेश के यहाँ अहलमद के पद पर नौकरी की किंतु, परवशता इन्हें स्वीकार नहीं हुई। ब्रजनन्दन जी ने तीन विवाह किए। इनकी पहली पत्नी जिला बाराबंकी के ‘बड़ैल’ नामक ग्राम की थीं। अतः इन्होंने अधिकांश समय बाराबंकी में बिताया था। परन्तु इनके प्रकृति परिवेश में बैसवारीपन स्पष्ट था। ये स्वभाव से बड़े भावुक थे। इनका देश के वरिष्ठ राजनेताओं, साहित्यकारों से घनिष्ठ परिचय रहा है, जैसे - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (देश के प्रथम राष्ट्रपति), जवाहर लाल नेहरू, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, आदि। साहित्यिक संस्थाओं ने इन्हें समय-समय पर अनेक उपाधियाँ देकर सम्मानित किया। यथा- ‘काव्य-भूषण’, ‘कविः मनीषी’ साहित्य परिषद औरैया से तथा बनारस वेदांत परिषद से ‘कविरत्न’ की उपाधि मिली। इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं- १. दुखिया किसान, २ महिपाल वैचित्र्य, ३- ब्रिटिश असहयोग, ४ वैवाहिक विनय। इसके अतिरिक्त ब्रज मंजरी, प्रदोष पूजा, ऊधौ-उपचार प्रमुख हैं। अनेक स्फुट कवित्त भी इन्होंने लिखे हैं। इनकी भाषा मूलतः ब्रज है, परन्तु खड़ी बोली और अवधी में भी रचनायें की हैं। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना के स्वर, सामाजिक संस्कारबोध तथा भक्ति और श्रृंगारिक भावना का अद्भुत सामंजस्य है। इनकी भावाभिव्यंजना तथा वर्णन चातुर्य बड़ा प्रभावपूर्ण है। भाषा भावानुवर्तिनी है। प्रवाहमयी लययुक्त इनके पदों को पढ़कर कभी-कभी घनानन्द के पदों (सवैयों) की स्मृति हो जाती है।

ब्रजचरित
यह सं. १७६० में चरनदास कृत अवधी ग्रंथ है।

ब्रजनंदन सहाय
ये आरा जिला (बिहार) निवासी आधुनिक अवधी साहित्यकार हैं। इन्होंने सन् १९०० में ‘सत्यभामा मंगल’ नामक ग्रंथ का सृजन किया था, जिसकी भाषा अवधी का मिश्रित रूप है।

ब्रजभूषण त्रिपाठी
इनका जन्म सन् १८९५ ई. ग्राम दरियापुर, जिला सीतापुर में हुआ था। वंशीधर शुक्ल इन्हें अपना मूल गुरू मानते थे। इनकी ‘सती पियरिया’ लगभग १५० पंक्तियों की एक लम्बी अवधी रचना है, जो १९२९ ई. में माधुरी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। स्वान चिरई भारत, एक जनौरा, अल्हड़ परोसी आदि इनकी अवधी की प्रसिद्ध रचनाएँ है। इनका निधन सन् १९३४ में अल्पावस्था में ही हो गया था।

ब्रजलाल भट्ट ‘ब्रजेश’
ये रामनगर (बाराबंकी) के निवासी हैं। इन्होंने ’घूस’ शीर्षक से अवधी भाषा में एक लम्बी कविता लिखकर समाज में चारों तरफ व्याप्त भ्रष्टाचार का उल्लेख किया है। इनकी अवधी ठेठ शब्दावली से युक्त है तथा उसमें सहजता का बोध भी होता है।

ब्रजवासीदास
ये कृष्ण काव्य-परम्परा के कवि एवं संत हैं। ब्रज क्षेत्र होने के बावजूद अवधी भाषा को इन्होंने सम्मान प्रदान किया है। सं. १८२७ में ‘ब्रज विलास’ नामक अवधी ग्रंथ का प्रणयन करके इन्होंने यह सम्मान प्रदर्शित किया है।

ब्रजविलास
यह सं. १८२७ में ब्रजवासीदास द्वारा रचित अवधी काव्य-ग्रंथ है।

ब्रजेन्द्र खरे
इनका जन्म सन् १९३७ ई. में लखनऊ नगर में हुआ था। इनके अवधी गीतों का कवि सम्मेलनों में बड़ा आदर रहा है। इनके कुछेक अवधी गीतों के शीर्षक इस प्रकार है- गरम दुपहरिया, चन्दन बिरवा, बसन्ती बयार, उड़ति अबीर-गुलाल, जमाना बदलि गवा, जेठ के दिन, देवर भये सुकुमार, देसवा पै विपति परी, आदि। ब्रजेन्द्र खरे के ये सरस लोक गीत बड़े प्रभावी बन पड़े हैं। ये मंच के भी एक सफल कवि हैं। सम्प्रति ये परिवहन विभाग में हिन्दी अधिकारी हैं।

ब्रजेशकुमार पाण्डेय, ‘इन्दु’
इन्दु जी का परिचयात्मक विवरण उपलब्ध नहीं है, किन्तु इन्होंने अवधी साहित्य के अभिवर्द्धन में पर्याप्त कार्य किया है। इन्होंने व्यंग्य चिन्तन, व्यंग्य व्यथा के साथ ही आँखों पर १०० छन्दों का मनोहारी चित्रण भी प्रस्तुत किया है।

ब्रह्मदत्त ‘ब्रह्मांड’
इनका जन्म सन् १९४२ में बाराबंकी जनपद के रामसनेहीघाट पर राजपुर गाँव में हुआ था। हास्य एवं व्यंग्य इनके उल्लेखनीय हैं। फैजाबाद से प्रकाशित जनमोर्चा दैनिक के स्तम्भ ‘हाव-भाव’ में इन्होंने अनवरत पाँच वर्षों तक लिखा। सम्प्रति स्वास्थ्य विभाग में सेवारत हैं। ’बापू’ कविता में इनका अवधी अनुराग स्पष्टतः मुखरित हुआ है।


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