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Awadhi Sahitya-Kosh

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दिनेश मिश्र
अयोध्या के निवासी मिश्र जी अवधी जगत के अल्पख्यात साहित्यकार हैं।

दिवाकर प्रसाद अग्निहोत्री ‘दिवाकर’
इनका जन्म २ फरवरी १९२७ ई. को सीतापुर जनपद की बिसवाँ तहसील के पकरिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. लक्ष्मीनारायण अग्निहोत्री संस्कृत एवं ज्योतिष के अधिकारी विद्वान थे। दिवाकर जी दैनिक पत्र ‘नवजीवन’ के संपादकीय विभाग में अंत तक कार्यरत रहे। इनका कार्यक्षेत्र एवं निवास स्थान लखनऊ रहा। खड़ी बोली के कवि होने के साथ-साथ इन्होंने ’हम तिनुका हन’ नामक एक अवधी काव्य सृजित किया, जिसका प्रकाशन सन् १९५८ में हुआ। १९८४ ई. में इनका निधन हो गया।

दीन जी
बस्ती के निवासी दीन जी अवधी के श्रेष्ठ भक्त हैं।

दुखहरन दास
ये गाजीपुर (उ.प्र.) के निवासी तथा संत मलूकदास के शिष्य थे। इन्होंने ‘पुहुपावती’ नामक प्रेमाख्यान काव्य का प्रणयन संवत् १७२६ में किया। इनकी काव्य भाषा अवधी है अतः अवधी के विकास में कवि दुखहरन दास तथा इनकी कृति पुहुपावती गणनीय है।

दुर्गादास
ये जगजीवन दास के सत्यनामी सम्प्रदाय के एक सिद्ध संत थे। इनका जन्म एक कुर्मी क्षत्रिय कृषक परिवार में सन् १८७१ ई. में हुआ था, जो ग्राम मोहम्मदपुर अमेठी (मोहनलाल गंज), लखनऊ में स्थित था। इनके गुरू का नाम गुरूदत्त दास था। ‘अमृतवाणी’ इनके मुखारबिन्द से निकले हुए बचनों का संग्रह है, जिसका प्रकाशन सन् १९८२ में लखनऊ से हुआ। ‘दुर्गाझूठा’ एवं ’बोधदेव’ नामक रचनाएँ भी उनके नाम से मिलती हैं। इनका शरीरान्त १५ जून १९५९ को हुआ।

दुलारे
ये रायबरेली जनपद के निवासी हैं। इन्होंने अवधी भाषा में ‘अवध मा राना भयो मरदाना’ नामक रचना प्रस्तुत की।

दुवारुचारु
विवाहोत्वसव पर बारात-आगमन के समय कन्या पक्ष की स्त्रियाँ बारातियों का स्वागत करती हुई इस अवधी लोकगीत का गायन करती हैं। इसमें आतिथ्य का भाव दिखाई देता है, साथ ही व्यंग्य-विनोद भी। यथा- गलियाँ बहारौ बाबा तुम्हरे अवत हैं दुलरू दमाद रे। घोड़वा पलानौ भइया मोरे बहनोइया आगे होइकै जाउ रे।

दूजनदास
ये दादू दयाल के शिष्य थे। इनका जीवन काल सं. १६४० से सं. १६८० के मध्य रहा, ऐसा अनुमान किया जाता है। इन्होंने ’ग्रंथ चौपाई’, ‘बावनी ग्रंथ’, पन्द्रह तिथि, उपदेश चौपाई, चित्रावली आदि ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इन्होंने अधिकांश अवधी भाषा का प्रयोग किया है।

दुथनाथ शर्मा ’श्रीश’
इनका. जन्म १५ सितम्बर १९२० ई. को मेहरवाँ गाँव, जिला जौनपुर में हुआ था। इधर ये कानपुर के निवासी हैं। श्रीश जी मंच के सफल गीतकार हैं। इनके गीत जहाँ एक ओर विरह वेदना से आपूर्ण हैं तो दूसरी ओर समूची ग्राम्य संस्कृति अपने समग्र अवयवों के साथ इनके गीतों में सिमट आई है। कहीं कवि लोक-चेतना को झकझोरता हुआ दृष्टिगत होता है तो कहीं गाँव की मनोहारी प्रकृति में रमता हुआ। ‘फूलपाती’ श्रीश जी का एक प्रसिद्ध अवधी काव्य संग्रह है, जिसमें देश का गौरव गान है।

दुधनाथ शुक्ल ‘करुण’
करुण जी अपने समय के प्रख्यात अवधी साहित्यकार थे। इन्होंने अपना साहित्य मंचों तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है।


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