यह उसमान कवि द्वारा रचित एक सूफी प्रेमाख्यान है। इस कृति का रचनाकाल हिजरी १०२२ है। इस कृति की भाषा अवधी है। यह सुजान और चित्रावली की प्रणय गाथा है। कथा सुखान्त है। इस ग्रन्थ का पता सन् १९०४ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा में लगा। इसका प्रकाशन सभा की ओर से सन् १९१२ में हो गया है। ग्रन्थ दोहा-चौपाई छन्दों में लिखा है।
चिरंजीव
ये डलमऊ, रायबरेली के निवासी एवं भारतेन्दु युगीन अवधी कवियों में से एक हैं।
चैती
अवध का यह एक ऋतुगीत है, जो फसल-महोत्सव के रूप में गाया जाता है। इसे उल्लास सूचक, प्रकृतिपरक र कहा जा सकता है। यथा- काहे लागी सैयां भयो जोगिया हो रामा सोवत रह्यों सइयाँ संग सेजवा। सेजवा ले सैयां गए चेरिया हो रामा।