रँधा भात शीघ्र बिगड़ जाता है और एक दिन के बाद ही खाने के योग्य नहीं रहता, अतः कहावत का प्रयोग ऐसी वस्तु के लिए होता है जो बहुत दिनों तक घर में न रखी जा सके, अथवा हजम न की जा सके, जैसे विवाह के योग्य सयानी लड़की अथवा पराई थाती।
रत्नों के आगे दीपक नहीं जलता।
रंग में भंग कर दिया।
राँड़ का रोना और पुरवाई का चलना व्यर्थ नहीं जाता।
राजा के द्वारा लूट लिये गये और होली के अवसर पर पिट गये की कौन फिक्र करता है।
राजा कर्ण पहर, अर्थात् दान का समय, सूर्य अथवा चन्द्र-ग्रहण के समय भंगी बसोर दान माँगते समय कहते हैं।
राजा का धन तीन बातों में खर्च होता है, इमारतें बनवाने में, फौज-फाँटा रखने में या खुशामदी दरबारियों में।
राजा जिस पर प्रसन्न होता है वही बड़ा आदमी बन जाता है।