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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

रो-रो डुकरियन गीत गाये, लरकन खां आवे हाँसी
बुढ़ियों ने रो रो कर तो गीत गाये, लड़कों को हँसी आती है, किसी के परिश्रम को न सराहना, बल्कि हँसना।

रौल-चौल होबो
चहल-पहन होना।

रस्सी का साँप बनाते हैं।
=CONCAT(A349,B349)
रस्सी का साँप बनाते हैं।।

रस्सी से ऐंठते हैं, व्यर्थ अकड़ते हैं।
=CONCAT(A354,B354)
रस्सी से ऐंठते हैं, व्यर्थ अकड़ते हैं।।

रोटी रखने का मिट्टी का बना बासन, तवे पर जो रोटी सिक रही है वह तुम्हारी और जो बन चुकी है वह मेरी, स्वार्थी के लिए।
=CONCAT(A394,B394)
रोटी रखने का मिट्टी का बना बासन, तवे पर जो रोटी सिक रही है वह तुम्हारी और जो बन चुकी है वह मेरी, स्वार्थी के लिए।।

रुपया कमाने की फिक्र सवार हो जाना, घर गृहस्थी की चिन्ता में पड़ जाना।
=CONCAT(A564,B564)
रुपया कमाने की फिक्र सवार हो जाना, घर गृहस्थी की चिन्ता में पड़ जाना।।

रोटियाँ तैयार होते-होते भी खाने को मिलेंगी इसका विश्वास नहीं।
=CONCAT(A590,B590)
रोटियाँ तैयार होते-होते भी खाने को मिलेंगी इसका विश्वास नहीं।।

रोज कमाना और रोज खाना।
=CONCAT(A757,B757)
रोज कमाना और रोज खाना।।

रँधा भात शीघ्र बिगड़ जाता है और एक दिन के बाद ही खाने के योग्य नहीं रहता, अतः कहावत का प्रयोग ऐसी वस्तु के लिए होता है जो बहुत दिनों तक घर में न रखी जा सके, अथवा हजम न की जा सके, जैसे विवाह के योग्य सयानी लड़की अथवा पराई थाती।
=CONCAT(A904,B904)
रँधा भात शीघ्र बिगड़ जाता है और एक दिन के बाद ही खाने के योग्य नहीं रहता, अतः कहावत का प्रयोग ऐसी वस्तु के लिए होता है जो बहुत दिनों तक घर में न रखी जा सके, अथवा हजम न की जा सके, जैसे विवाह के योग्य सयानी लड़की अथवा पराई थाती।।

रत्नों के आगे दीपक नहीं जलता।
=CONCAT(A906,B906)
रत्नों के आगे दीपक नहीं जलता।।


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