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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

मालिक तो देने का हुक्म दे, परन्तु खाजांची को दुःख हो कि क्यों दिया जा रहा है, दानपुण्य के कार्य मे जब कोई बाधक बने, अथवा दूसरे को देने से मना करे तब।

मुफ्त की चीज के विषय में क्य देखना कि कैसी है, जैसी मिल वैसी ही अच्छी।

मालिक के घर आनन्द- उत्सव होने से नौकर को भी छुट्टी मिली।

मनुष्य समझता है कि दिन जा रहा है, परन्तु दिन के लेखे तो मनुष्य ही जाता है।

मूर्ख कारीगर साधनों को दोष देता है।

माँ पैसे से ही सब कुछ होता है।

मन ही मन शाप देना।

मनुष्य के शरीर में जो ईश्वर निवास करता है वही ब्रह्माण्ड में व्याप्त है।

मन के लड्डू खाना।

मैदान में चलने-फिरने ही से ढोर को चरने के लिए घास मिलती है, एक जगह बैठे रहने से पेट कैसे भर सकता है।


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