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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

मलने या मसोसने की क्रिया, अपनी दाढ़ी पहिले मली जाती है, अपनी विपत्ति टालने का प्रयास पहिले किया जाता है।

मुफ्त का खाने को मिले तो कमाने कौन जाय।

मनुष्यों में नाई और पक्षियों में कौआ ये बड़े चतुर होते है।

मर्यादा वाले, प्रतिष्ठावान जिनके पास ओढ़ने को फटे-पुराने चिथड़े हैं वे उनमें ही सुख की नींद सोते हैं, परन्तु बड़े आदमी बैठे होते हैं, इसलिए कि उनके पास कीमती कपड़े नहीं, तात्पर्य यह कि गरीबों का काम थोड़े में चल जाता है, अथवा संतोष बड़ी चीज है।

मुर्खों को खिलाना-पिलाना व्यर्थ है।

मारे-मारे फिरोगे।

मूर्खतावश बँधी-बँधायी नौकरी छोड़ते हैं।

मूर्ख के पास से कोई सार की बात पल्ले नहीं पड़ती, अथवा मूर्ख बड़ा घमंडी होता है।

माता ही प्रसव की वेदना जानती है अथवा माता को ही संतान के सुख-दुख की चिन्ता होती है।

मुफ्तखोरों के लिए।


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