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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

माता ही प्रसव की वेदना जानती है अथवा माता को ही संतान के सुख-दुख की चिन्ता होती है।
=CONCAT(A340,B340)
माता ही प्रसव की वेदना जानती है अथवा माता को ही संतान के सुख-दुख की चिन्ता होती है।।

मुफ्तखोरों के लिए।
=CONCAT(A367,B367)
मुफ्तखोरों के लिए।।

मालिक तो देने का हुक्म दे, परन्तु खाजांची को दुःख हो कि क्यों दिया जा रहा है, दानपुण्य के कार्य मे जब कोई बाधक बने, अथवा दूसरे को देने से मना करे तब।
=CONCAT(A454,B454)
मालिक तो देने का हुक्म दे, परन्तु खाजांची को दुःख हो कि क्यों दिया जा रहा है, दानपुण्य के कार्य मे जब कोई बाधक बने, अथवा दूसरे को देने से मना करे तब।।

मुफ्त की चीज के विषय में क्य देखना कि कैसी है, जैसी मिल वैसी ही अच्छी।
=CONCAT(A456,B456)
मुफ्त की चीज के विषय में क्य देखना कि कैसी है, जैसी मिल वैसी ही अच्छी।।

मालिक के घर आनन्द- उत्सव होने से नौकर को भी छुट्टी मिली।
=CONCAT(A515,B515)
मालिक के घर आनन्द- उत्सव होने से नौकर को भी छुट्टी मिली।।

मनुष्य समझता है कि दिन जा रहा है, परन्तु दिन के लेखे तो मनुष्य ही जाता है।
=CONCAT(A544,B544)
मनुष्य समझता है कि दिन जा रहा है, परन्तु दिन के लेखे तो मनुष्य ही जाता है।।

मूर्ख कारीगर साधनों को दोष देता है।
=CONCAT(A553,B553)
मूर्ख कारीगर साधनों को दोष देता है।।

माँ पैसे से ही सब कुछ होता है।
=CONCAT(A583,B583)
माँ पैसे से ही सब कुछ होता है।।

मन ही मन शाप देना।
=CONCAT(A638,B638)
मन ही मन शाप देना।।

मनुष्य के शरीर में जो ईश्वर निवास करता है वही ब्रह्माण्ड में व्याप्त है।
=CONCAT(A649,B649)
मनुष्य के शरीर में जो ईश्वर निवास करता है वही ब्रह्माण्ड में व्याप्त है।।


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