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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

घर में आँगन चाहिए और लड़के के साला।

घर जला तो जला, चोंखरों की अकड़ तो खुल गयी, घर के जलने से वे भी जल गये अथवा भाग गये, जब कोई थोड़े से लाभ के लिए अपनी बड़ी हानि कर बैठे तब उस पर व्यंग्य।

घर में तो घी नहीं और पकवान खाने का मन।

घिनौना गीदड़ और छींट का जामा।

घोड़ा इस पार या उस पार, परिणाम कुछ भी हो, काम करना ही है।

घोड़े के पीछे खड़े होने से दुलत्ती लगने का डर रहता है और हाकिम के आगे चलना धृष्टता है, इनसे बच कर चलो।

घोड़े की लात घोड़ा ही सहन कर सकता है , बड़ी की ठोकर बड़े ही सहन करते हैं।

घर साफ कर दिया, सब खा लिया।

घर का आदमी ही यदि विरुद्ध हो जाय तो काम कैसे चले।

घड़ी-घड़ी में मिजाज बदलना।


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