आदमी की अपने घर में कद्र नहीं होती, अथवा अपरिचित स्थान में पहुँचने पर गुणहीन व्यक्ति भी विद्वान मान लिया जाता है।
गुन न हिरानो, गुन गाहक हिरानो है
संसार में गुण वालों की कमी नहीं, कमी है गुणग्राहकों की।
गुरई खों माँछी लगतीं
गुड़ के बाप कोल्हू, अर्थात् सब उपद्रवों की जड़।
गुर खाने और पाग राखने
अच्छा खा-पीकर भी अपनी इज्जत रखनी है।
गुर खायें पुअन कौ नेम करें
दिखावटी परहेज करना।
गुर डिंगरियन घी उँगरियन
गुड़ तो एक-एक डली करके ग्राहकों द्वारा उठाये जाने से नष्ट होता है और घी उँगलियों में लेने से।
गुर भरौ हँसिया
ऐसी वस्तु जिसे न तो छोड़ते ही बने और न ग्रहण करते हैं।
गुरू बिन ज्ञान भेद बिन चोरी, बहुत नही तो थोरी थोरी
गुरू के बिन ज्ञान और भेद के बिना चोरी नहीं होती।
गैल कौनऊँ जायें, बैल घरई के आयँ
किसी आदमी के बैल भटक गये, उसके साथी ने कहा- देखों, तुम्हारे बैल कहाँ जा रहे हैं, इस पर उसने उत्तर दिया- चिन्ता की बात नहीं, बैल घर के ही हैं, किसी रास्ते जायें, भूलेंगे नहीं, ढोरों की स्मरण शक्ति के संबंध में कहावत।