ईश्वर स्वतंत्र क्रियाशक्ति संपन्न होने के कारण ऋषि कहलाता है। (ग. का. टी. पृ. 11)। ईश्वर को समस्त क्रिया व विद्या का ईश होने के कारण ऋषि नाम से अभिहित किया गया है। (पा. सू. कौ. भा. पृ. 136, 127)। ऋषि शब्द की ऐसी व्याख्या कौडिन्य ने की है। यद्यपि यह व्याख्या निरुक्त या व्याकरण से सहमत नहीं है फिर भी पाशुपत दर्शन में ऐसा माना गया है।