logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Definitional Dictionary of Indian Philosophy Vol.-I

Please click here to read PDF file Definitional Dictionary of Indian Philosophy Vol.-I

ईश
ईश्‍वर का नामांतर।
ईश्‍वर समस्त जगत् का प्रभु होने के कारण ईश कहलाता है। कार्य रूप जगत् की सृष्‍टि, स्थिति, संहार आदि और जीवों के बंधन और मोक्ष सभी ईश्‍वर के ही हाथ में होते हैं। सभी उसकी इच्छा के अनुसार हुआ करते हैं। सभी का मूल संचालक वही हे। अतः सभी पर ईशन (प्रशासन) करता हुआ वह ईश कहलाता है। (श. का. टी. पृ. 92)।
(पाशुपत शैव दर्शन)

ईश प्रसाद
लाभों के उपायों में एक अत्युत्‍तम उपाय।
भासर्वज्ञ के अनुसार ईश प्रसाद साधना के उपायों का एक प्रकार है। पाशुपत दर्शन में मुक्‍ति के कई साधन बताए गए हैं। परंतु पाशुपत सूत्र भाष्य में कौडिन्य ने अंत में ईश प्रसाद को ही मुक्‍ति का अंतिम व चरम साधन माना है। युक्‍त साधक का व्यक्‍तिगत प्रयत्‍न तो होना ही चाहिए, लेकिन ईश प्रसाद अधिक आवश्यक है। ईश्‍वर का शक्‍तिपात न होगा तो व्यक्‍तिगत प्रयत्‍न निष्फल होगा। यह ईश्‍वर की स्वतंत्र इच्छा मानी गई है कि वह किस जीव पर कब शक्‍तिपात करे। अंतत: ईश प्रसाद से ही दुःखों का का पूरी तरह से अंत हो जाता है और रुद्रसायुज्य की प्राप्‍ति होती है। (पा. सू. कौ. भा. पृ. 143)। ईश्‍वर साधक को भी अपने सर्वज्ञत्व आदि शक्‍तियों को देना चाहता है। ईश्‍वर की इस इच्छा को ही ईश प्रसाद कहते हैं। (कारणस्य स्वगुण दित्सा प्रसाद इत्युच्यते-ग. का. टी. पृ. 22)।
(पाशुपत शैव दर्शन)

ईशान
ईश्‍वर का नामांतर।
समस्त विधाओं का ईश्‍वर होने के कारण ईश्‍वर ईशान कहलाता है। (पा. सू. 5-42; ग. का. टी. पृ. 12)।
(पाशुपत शैव दर्शन)

ईश्‍वर
भगवान पशुपति का नामांतर।
वह समस्त भूतों के कार्यों का अधिष्‍ठाता होने के कारण ईश्‍वर कहलाता है। समस्त चराचर जगत् का स्वामी होने के कारण तथा उन पर उसका ईशत्व होने के कारण वह ईश्‍वर कहलाता है। इस संसार के समस्त व्यवहारों पर उसे छोड़कर और किसी का भी पूरा अधिकार नहीं है। वही कर्तुम्, अकर्तुम्, अन्यथाकर्तुम् समर्थ होने के कारण एकमात्र ईश्‍वर है। (पा. सू. कौ. भा. पृ. 145, ग. का. टी. पृ. 12)।
(पाशुपत शैव दर्शन)


logo