ऐहिकता
इस मत के अनुसार राज्य और धर्म का कार्य क्षेत्र भिन्न है और राज्य को धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। भारतीय संदर्भ में इसको सर्वधर्मसमभाव के रूप में लेते हैं।
Selective Realism
वरणात्मक यथार्थवाद
अमेरिका के समसामयिक नव्य-यथार्थवादियों का वह मत कि जैसे यथार्थ प्रत्यक्ष में वैसे ही भ्रम में भी कोई वस्तु मानसिक या विषयिगत नहीं होती, बल्कि वास्तविक होती है; अंतर केवल यह होता है कि वस्तु के गुणों में से कुछ का ही मस्तिष्क या तंत्रिकातंत्र ने चुनाव किया होता है।
Selective Subjectivism
वरणात्मक विषयिनिष्ठवाद
प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडिंगटन (1882-1944) का ज्ञानमीमांसीय मत, जिसके अनुसार प्रत्यक्ष में हमें अपनी चेतना के ही कुछ तत्वों (प्रदत्तों) का ज्ञान होता है, परन्तु इन तत्वों के बाह्य जगत् में स्थित वस्तुओं के समान होने का दावा नहीं किया जा सकता। एडिंगटन ने यह माना है कि जिस प्रकार जाल केवल उन मछलियों को पकड़ सकता है जिनका आकार उसके छेदों से बड़ा होता है उसी प्रकार हमारी इंद्रियाँ केवल कुछ चुने हुए प्रदत्तों को ही ग्रहण कर सकती हैं।
Selective Theory (Of Sensa)
(संवित्तों का) वरण-सिद्धांत
वह यथार्थवादी सिद्धांत कि संवेद्यों का संवेदन की क्रिया से पूर्व अस्तित्व होता है, और इसलिए मन का कार्य सर्जनात्मक नहीं बल्कि वरणात्मक होता है।
Self
आत्मा
अनुभव या चेतना में कर्ता (विषयी या अहम्) के रूप में तथा आत्म-चेतना में कर्ता और कर्म के तादात्म्य के रूप में विद्यमान तत्व, जिसे प्रायः शरीर से स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाली, परिवर्तन के मध्य अपरिवर्तित बनी रहने वाली, एक अभौतिक सत्ता के रूप में कल्पित किया गया है।
Self-Alienation
आत्म-परकीयन
वह स्थिति जिसमें व्यक्ति स्वयं को अपने ही परिवेश में अज़नबी अनुभव करता है।
Self-Conscious
आत्मचेतन
देखिये `self-consciousness`।
Self-Consciousness
आत्मचेतना
चेतना की वह अवस्था जिसमें ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय एक रूप होते हैं और चेतना स्वयं केन्द्रबिन्दु होती है।
Self-Contradiction
आत्म-व्याघात
एक तार्किक गुण जो उस कथन में विद्यमान होता है जिसके उद्देश्य और विधेय परस्पर निषेधक हों, ऐसी प्रतिज्ञप्ति प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र में सदैव असत्य होती है।
Self-Determinism
आत्मनियतत्त्ववाद, आत्मनिर्धारणवाद
एक मत जिसके अनुसार कर्म स्वयं कर्ता के चरित्र या आंतरिक स्वभाव द्वारा निर्धारित होते हैं। यह मत नियतत्ववाद और अनियतत्ववाद का समन्वय करता है : नियतत्ववाद मनुष्य के संकल्प को बाह्य कारणों के द्वारा निर्धारित मानता है जबकि अनियतत्ववाद उसे किसी भी कारण द्वारा निर्धारित नहीं मानता, और ये दोनों ही कोटियाँ नैतिक दायित्व की समस्या को नहीं सुलझा पातीं।