संवेद्य-गुण
1. संवेदनाओं के गुणों का अमूर्तरूप में ग्रहण जैसे : स्वेतता, खट्टापन।
2. विशिष्ट वस्तुओं के साहचर्य में निहित गुण जैसे श्वेत कमल, खट्टा अंगूर।
Senses, The Five
पंच ज्ञानेन्द्रियाँ
कर्ण, नासिका, जिह्वा, त्वक् एवं चक्षु इन्द्रियाँ।
Sensibles, Proper (Aristotle)
विशिष्ट संवेद्य
एकेन्द्रिय मात्र से गृहीत विषयों के गुण यदि उक्त ज्ञानेन्द्रिय सक्षम है तो वह उस गुण के प्रत्यक्ष में विफल नहीं होती। यथा दृष्टि हमारे चक्षु के लिये, ध्वनि श्रवण के लिये, स्पर्श, त्वक् के लिये स्वाद, रसना के लिये तथा गन्ध, घ्राण के लिये विलक्षण है।
Sensibilia (Sing., Sensibile)
संवेद्यार्थ
रसल के अनुसार, वे वस्तुएँ जिनकी तत्त्वमीमांसीय तथा भौतिक स्थिति इंद्रियप्रदत्त के तुल्य ही होती हैं किंतु जिनके बारे में यह जरूरी नहीं है कि वे सामने प्रस्तुत हों। जैसे मनुष्य विवाह-संबंध के होने पर पति बन जाता है वैसे ही संवेद्यार्थ किसी मन से संबंध (प्रत्यक्ष) होने पर इंद्रियप्रदत्त कहलाता है।
Sensibility
संवेदन-शक्ति
कांट के अनुसार, मन की वह शक्ति जिसके द्वारा वह ऐंद्रिय संस्कारों को ग्रहण करता है।
Sensualism
विषयभोगवाद, इंद्रियसुखवाद
नीतिशास्त्र में, वह मत कि इंद्रियों की तृप्ति अर्थात् विषयों का भोग ही परम शुभ है।
Sensum
संवित्त
वह सामग्री जो किसी बाह्य ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से मन के समक्ष प्रस्तुत होती है, संवेदन की अंतर्वस्तु।
Sentence
वाक्य, दंडादेश, दंड
1. शब्दों (प्रतीकों) पदों का सार्थक समूह।
2. विधिशास्त्र के संदर्भ में दंड एवम् दंडादेश।
3. तर्कशास्त्र व गणित में अभिकथन के रूप में प्रयुक्त।
Sentence Categorical
निरूपाधिक वाक्य
वह वाक्य जिसमें उद्देश्य-विधेय-क्रिया क्रमशः हों और जो किसी व्यक्ति या वर्ग के विषय में किसी गुण या सदस्यता का निरपेक्षरूपेण विधि या निषेध करे।
Sentence Connectives
वाक्य-संयोजक
1. वे शब्द जिनका प्रयोग दो या दो से अधिक वाक्यों या कथनों को संयुक्त करने के लिये होता है जैसे `और`, `अथवा`, इत्यादि।
2. तर्कशास्त्र में प्रयुक्त प्रतीक जो दो या अधिक वाक्यों या कथनों का संयोजन करते हैं, जैसे v या כ।