1896 में जेमान द्वारा प्रेक्षित एक परिघटना जिसमें किसी विकिरण स्रोत पर दुर्बल अथवा कुछ प्रबल चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव से स्पेक्ट्रमीय रेखाओं का घटकों में विपाटन हो जाता है जो इन रेखाओं के आस-पास सममित रूप से व्यवस्थित होते हैं । ये घटक ध्रुवित होते हैं और ध्रुवण की दिशाएं तथा सूक्ष्म संरचना का आभास उस दिशा पर निर्भर करता है जिसमें चुंबकीय बल रेखाओं के सापेक्ष विकिरण स्रोत को देखा जाता है । जेमान प्रभाव दो प्रकार का होता है-
1. सामान्य जेमान प्रभाव और
2. जटिल जेमान प्रभाव ।
सामान्य प्रभाव में जब स्रोत को क्षेत्र की अभिलम्ब दिशा में देखा जाता है तो स्पेक्ट्रमीय रेखा का तीन घटकों में विपाटन को जाता है जिसमें बीच की रेखा की आवृत्ति मूल रेखा जितनी ही होती है । यह घटक समतल ध्रुवित होता है और क्षेत्र के समान्तर कंपन करता है जबकि अन्य दो पार्श्व घटक क्षेत्र की अभिलम्ब दिशा में कंपन करते हैं । स्रोत को क्षेत्र की दिशा में देखने पर केवल दो ही घटक प्राप्त होते हैं जो विपरीत दिशाओं में विस्थापित होते हैं और विपरीत अभिदिशाओं में वृत्त ध्रुवित होते हैं । जटिल जेमान प्रभाव में घटकों की संख्या कहीं अधिक होती है जो कभी-कभी 12 या 15 तक पहुंच जाती है । ये सममित रूप से व्यवस्थित और ध्रुवित होते हैं जिन्हें सदैव तरंग-संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है ।
zeeman effect
जेमान प्रभाव
जब कोई परमाणु प्रबल चुंबकीय क्षेत्र में स्थित होता है तो उसके द्वरा उत्सर्जित प्रकाश के तरंग-दैर्ध्यों में परिवर्तन हो जाता है । उसके स्पेक्ट्रम की प्रत्येक रेखा कई घटकों में विभक्त हो जाती है जिसके तरंग दैर्ध्यों में बहुत कम अंतर होता है और प्रत्येक घटक ध्रुवित हो जाता है । इस घटना को जेमान प्रभाव कहते हैं ।
इसका प्रेक्षण चुंबकीय बल रेखाओं की दिशा में भी किया जाता है (अनुदैर्ध्य प्रेक्षण) और उनसे समकोणीय दिशा में भी किया जाता है । (अनुप्रस्थ प्रेक्षण) और इन दोनों प्रेक्षणों में घटकों की संख्या तथा ध्रुवण में अंतर पाया जाता है ।
इस प्रभाव का सरलतम रूप ऐसी स्पेक्ट्रम रेखाओं में पाया जाता है जो एकक होती हैं । अनुदैर्ध्य प्रेक्षण में स्पेक्ट्रम रेखा दो घटक रेखाओं में विभक्त हो जाती है जो विपरीत दिशाओं में वृत्त-ध्रुवित होती हैं अनुप्रस्थ प्रेक्षण में उसके तीन घटक हो जाते हैं जो रेखा-ध्रुवित होते हैं । मध्य घटक का ध्रुवण अन्य दोनों घटकों के ध्रुवण से समकोणीय होता है । मध्य घटक का तरंग-दैर्ध्य तो मूल रेखा के तरंग-दैर्ध्य के बराबर होता है किन्तु दोनों पाश्व घटकों के तरंग-दैर्ध्यों में तथा मूल तरंग दैर्ध्य में जो अंतर होता है वह (dλ = ±eH/4πm) होता है । अनुदैर्ध्य प्रेक्षण में घटकों के तरंग दैर्ध्य का परिवर्तन भी इतना ही होता है । इस समीकरण में H = चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता, e तथा m इलेक्ट्रान के चार्ज तथा द्रव्यमान, और c प्रकाश का वेग है। जब मूल रेखा द्विक, त्रिक या बहुक होती है, तब यह प्रभाव बहुत जटिल हो जाता है और घटकों की संख्या बहुत बढ़ जाती है । उपरोक्त सरल प्रभाव की व्याख्या तो तरंग सिद्धांत के द्वरा हो सकती है किन्तु इस जटिल प्रभाव की व्याख्या केवल क्वांटम सिद्धांत ही कर सकता है । यदि चुबंकीय क्षेत्र की तीव्रता बहुत ही अधिक बढ़ जाए तो इस प्रभाव के रूप बदलकर उपरोक्त सरल प्रभाव के समान हो जाता है । इस घटना को पाशन- बैक प्रभाव (Paschen Back effect) कहते हैं ।
इसी प्रकार चुंबकीय क्षेत्र में स्थित परमाणु के अवशोषण स्पेक्ट्रम की रेखाएं भी घटकों में विभक्त हो जाती हैं । इसे व्युत्क्रम जेमान प्रभाव कहते हैं ।
zener break down-voltage
जेनर भंग वोल्टता
अर्धचालक में व्युत्क्रम दिशा में लगने वाली यह वोल्टता जिस पर पदार्थ के विद्युत्रोधी गुणधर्म तिरोहित हो जाते हैं । इन स्थितियों के अंतर्गत अर्धचालक संधि के आर-पार लगी वोल्टता मुख्य रूप से अपरिवर्ती ही बनी रहती है और विद्युत धारा की सीमा संधि बाह्य परिपथ पर ही निर्भर होती है ।
zener breakdown
जेनर भंग
अर्धचालकों में पाया जाने वाला एक प्रकार का वोल्टता भंग । यह वोल्टता भंग अर्धचालक संधि के आर-पार लगे काफी प्रबल विद्युत्-क्षेत्र द्वारा इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित करके संयोजकता बैंड से सीधा ही चालन बैंड में भेजने से होता है । इलेक्ट्रॉनों का यह स्थानांतरण सुरंग प्रभाव के कारण होता है । इस प्रक्रम में आवेश वाहक का संवर्धन नहीं होता । जेनर भंग व्युत्क्रमणीय है क्योंकि पदार्थ के परावैद्युत गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार के उत्तेजित इलेक्ट्रॉनों से प्राप्त होने वाली विद्युत धार जेनर धार zener current कहलाती है ।
zener current
जेनर विद्युत् धारा
जेनर भंग के प्रसंग में उत्तेजित इलेक्ट्रानों से प्राप्त होने वाली विद्युत् धारा ।
zener diode
जेनर डाओड
एक विशिष्ट प्रकार का सिलिकॉन डाओड जो प्रयुक्त पश्च वोलट्ता का मान एक सीमा तक पहुंचने से पूर्व दिष्टकारी की तरह काम करता है । यह सीमा अवधाव भंजन वोल्टता या जेनर वोल्टता कहलाती है । इस सीमा के बाद डायोड में विद्युत् चालन प्रारम्भ हो जाता है । यह प्रक्रम जेनर भंग कहलाता है और डायेड के आर-पार वोल्टता-पात अब धारा पर निर्भर न होकर बिल्कुल अपरिवर्ती बना रहता है । शक्ति प्रदायों में वोल्टता का नियंत्रण और परिपथों में वोल्टता को सीमित रखने के लिए इसका काफी उपयोग किया जाता है ।
zenith
खमध्य, शिरोबिंदु
पृथ्वी के किसी स्थान के संदर्भ में खगोल का वह बिन्दु जो मेष राशि में है और अन्य राशियां इसी के आगे के उत्तरोत्तर क्रम में लिखी गई हैं ।
zero
शून्य, सिफर, जीरो
वास्तविक संख्याओं के योग-सापेक्ष समूह का तत्समक अवयव । इसका प्रतीक 0 है । यदि x कोई वास्तविक संख्या हो तो x + 0 = 0 + x
zero access storage/ memory
तुरत अभिगत स्मृति / संचय
कंप्यूटर शब्दावाली में एक प्रकार की ऐसी स्मृति जिससे सूचना प्राप्त करने में अभिगम काल की अवधि अन्य सभी प्रचालनों की अपेक्षा बहुत कम होती है ।
zero address instruction
शून्य पता अनुदेश
एक प्रकार का कंप्यूटर अनुदेश जो एक ऐसे विशिष्ट प्रचालन का निर्धारण करता है जिसमें कंप्यूटर कोड के द्वारा ही संकायों का स्थान-निर्धारण हो जाता है, जिससे किसी अन्य पते की आवश्यकता नहीं पड़ती ।