किसी ट्रांसड्यूसर के दो बिंदुओं में से एक पर प्रयुक्त होने वाले विभवांतर, बल अथवा दाब और दूसरे बिंदु पर परिणामी धारा, वेग या आयतन-वेग के बीच का संमिश्र अनुपात । इसमें सभी टर्मिनलों का अंत एक निर्दिष्ट प्रकार से होना चाहिए ।
transfinite number
परिमितातीत संख्या
वह गणन संख्या अथवा क्रम सूचक संख्या जो पूर्ण संख्या न हो ।
transformation
रूपांतरण
किसी आकृति या व्यंजक से दूरी आकृति या व्यंजक मे परिवर्तित होना, जैसे
1. एक बीजीय व्यंजक का दूसरे रूप वाले किसी अन्य व्यंजक मे बदलना ।
2. किसी समीकरण या बीजीय व्यंजक मे चरों के स्थान पर न्य चरों के संचय के रूप मे व्यक्त उनके मानों का प्रतिस्थापन ।
3. एक समष्टि की दूसरी समष्टि में कोई संगति या प्रतिचित्रण ।
transformer
ट्रांसफ़ार्मर (परिणामित्र)
वह स्थिर उपकरण जो बिना आवृत्ति बदले किसी प्रत्यावर्ती वोल्टता की विद्युत् - ऊर्जा को किसी अन्य प्रत्यावर्ती वोल्टता की विद्युत् - ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है । इसकी क्रिया अन्योन्य प्रेरण पर आधारित है । इस उपकरण में दो ऐसी कुंडलियों का होना आवश्यक है जो चुंबकीय रीति से युग्मित हों । इसमें से एक कुंडली को, जिसे प्राथमिक कहते हैं, प्रत्यावर्ति विद्युत् स्रोत द्वारा किसी वनिशेष वोल्टता की ऊर्जा दी जाती है और इसका परिणाम यह होता है कि दूसरी कुंडली, जिसे द्वितीयक कहते हैं, किसी अन्य परिपथ को अधिक या कम वोल्टता की ऊर्जा प्रदान करता है । अति उच्च आवृत्ति वाले ट्रांसफार्मरों के छोड़कर अन्यसब ट्रांसफ़ार्मरों की कुंडलियाँ लोहे के क्रोड (core) पर लिपटी होती हैं जिससे अन्योन्य प्रेरण बहुत बढ़ जाता है । यदि क्रोड में होने वाली ऊर्जा की हानि पर ध्यान न दिया जाए, तो प्राथमिक वोल्टता / द्वितियक वोल्टता = प्राथमिक कुंडली के फेरों की संख्या / द्विवितीयक कुंडली के फेरों की संख्या द्वितीयक वोल्टता प्राथमिक से अधिक होने पर परिणामित्र को उच्चायी (step up ) और कम होने पर अपचायी (step down) कहते हैं ।
transformer
ट्रांसफ़ार्मर, परिणामित्र
एक परिपथ से दूसरे परिपथ में विद्युत ऊर्जा का स्थानांतरण करने वाला एक उपकरण। इसमें दो या अधिक कुंडलियां चुम्बकीय प्रेरण से परस्पर युग्मित होती हैं। इनमें से एक परिपथ जो प्राथमिक कहलाता है किसी वोल्टता पर a.c. स्रोत से ऊर्जा ग्रहण करता है और अन्य परिपथ जो द्वितीयक कहलाता है लोड को किसी भिन्न वोल्टता पर ऊर्जा प्रदान करता है। क्रोड-हानियों की उपेक्षा करने पर प्राथमिक वोल्टता/ द्वितीयक वोल्टता = प्राथमिक कुंडली के फेरे / द्वितीयक कुंडली के फेरे। द्वितीयक वोल्टता प्राथमिक वोल्टता से अधिक होने पर परिणामित्र उच्चायी परिणामित्र कहलाता है और कम होने पर अपचायी परिणामित्र। ट्रांसफार्मर द्वारा ऊर्जा- स्थानांतरण में आवृत्ति का परिवर्तन नहीं होता परंतु इसमें वोल्टता और धारा का ही परिवर्तन होता है।
transients
क्षणिकाएँ
किसी तंत्र में अचानक किसी आवेश अथवा चालक बल लगाने या हटाने से उत्पन्न होने वाले क्षणिक विक्षोभ जो यांत्रिक, वैद्युत अथवा ध्वानिक हो सकते हैं । ऐसी किसी भी क्षणिका का आकार तंत्र के प्रकार पर निर्भर करता है परन्तु इसका परिमाण आवेग या चालक बल के परिमाण का एक फलन होता है । प्रणोदित कंपन क्षणिकाओं के उदाहरण हैं ।
transistor
ट्रांजिस्टर
अंग्रेजी के TRANsfer reSISTOR का संक्षेप रूप । एक बहु इलेक्ट्रोड वाली अर्ध - चालक युक्ति जिसमें दो विशिष्ट इलेक्ट्रोडों के मध्य बहने वाली विद्युत् - धारा किसी विशिष्ट इलेक्ट्रोड अथवा इलेक्रोट पर वोल्टता या धारा लगाकर माडुलित की जाती है । सर्वप्रथम ट्रांजिस्टर का आविष्कार सन् 1948 में हुआ । यह बिंदु संपर्क प्रकार का ट्रांजिस्टर था जो अब अप्रचलित है । इसमें जर्मेनियम जैसे अर्धचालक के लघु क्रिस्टल पर परस्पर समीप दो दिष्टकारी बिंदु संपर्क होते थे और एक एकल विशाल क्षेत्रफल वाला ओमीय संपर्क - बिंदु संपर्कों से कुछ दूरी पर होता था । लघु वोल्टता लगने पर युक्ति में धारा पर्वाह होने लगता था जो ओमीय संपर्क पर सिग्नल लगाकर मॉजुलित किया जा सकता था । आधुनिक ट्रांजिस्टर मुख्यतः दो प्रकार के हैः 1. द्विध्रुवी संधि ट्रांजिस्टर जिनमें युक्ति के मध्य अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों ही प्रकार के वाहकों का प्रवाह होता है । प्रायः इन्हें मात्र ट्रांजिस्टर के नाम से ही पुकारा जाता है । 2. एक ध्रुवी ट्रांजिस्अर जिनमें धारा वहन केवल बहुसंख्यक वाहकों द्वारा ही हात है । क्षेत्र प्रबावी ट्रांजिस्टर इनका एक प्रमुख उदाहरण है । द्विध्रुवी संधि ट्रांजिस्टर में तीन इलेक्ट्रोड होते हैं जिन्हें उत्सर्जक, आधार और संग्राहक कहते हैं । मूलतः इसमें दो p-n संधियाँ होती हं जिनके बीच में n अथवा p प्रदेश होते हैं जो दो संधियों से संलग्न होते हं । इस प्रकार p-n-p अथवा n-p-n प्रकार के ट्रांजिस्टर बनते हैं । n-p-n प्रकार केट्रांजिस्टर मे उत्सर्जक और संग्राहक प्रेदशों में n प्रकार के अपदर्व्यों की बहुतायत ह ती है और आधार प्रदेश में p प्रकार के अपद्रव्यों की । ट्रांजिस्टर के सिरों पर विभवांतर लगाने पर एक संधि की अभिनति अग्र दिशा में हो जाती है और दूसरी की व्युत्क्रम दिशा में। धारा प्रवाह अग्र अभिनत संधि के आर - पार होता है अर्थात्n प्रदेश से इलेक्ट्रॉन आधार प्रदेश में प्रवेश करते हैं और आधार प्रदेश मे होल n प्रदेश में । यह संधि उत्सर्जक - आधार संधि कहलाती है जिसमें प्रदेश उत्सर्जक होता है । इलेक्ट्रॉन आधार प्रदेश में विसरित ह कर संग्राहक प्रदेश मे इकट्ठे कर लिए जाते हैं । कुल धारा निन्नलिखित समीकरण से प्राप्त होती है Ie = Ib + Ie जिसमें Ie उत्सर्जक धारा है और Ib आधार धारा तथा Ie संग्राहक धारा है । संधि ट्रांजिस्टर को किसी भी परिपथ में इस प्रकार संबद्ध काय जा सकता है कि इसके तीनों टर्मिनलों में कोई एक टर्मिनल परिपथ के साथ उभयनिष्ठ हो । वोल्टता - प्रवर्धन के लिए उत्सर्जक का निवेश टर्मिनल के रूप में उपयोग किया जाता है और यह प्रचालन उभयनिष्ठ या भू - संपर्कित आधार प्रचालन कहलाताहै । धारा प्रवर्धन के लिए निवेश सिग्नल को उत्सर्जक पर न लगाकर आधार पर लगाया जाता है और यह प्रचालन उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रचालन कहलाता है । द्विध्रुवी संधि ट्रांजिस्टर बनाने की कई रीतियाँ हैं परंतु सभी रीतियों में फ़ास्फोरस, आर्सेनिक और ऐन्टिमनी जैसे n प्रकार के अपद्रव्य और बोरॉन, इन्डियम, गैलियम अथवा ऐलुमिनियम जैसे p प्रकार के अपदर्व्य ट्रांजिस्टर के उपयुक्त प्रदेशों में पहुँचाये जाते हैं । आजकल इसकी अधिकतम प्रचलित विधि विसरित संधि कहलात है । पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्र - प्रभावी - ट्रांजिस्टरों का उपयोग उत्तरोत्तर अधिक होता जा रहा है । इस प्रकार के ट्रांजिस्टरों में MOS (धातु-ऑक्साइड - अर्ध - चालक) प्रकार का ट्रांजिस्टर अधिक प्रचलित है । इन ट्रांजिस्टरों में इलेक्ट्रॉन अथवा होलों की एक चालक चैनल दो प्रदेशओं के बीच स्थापित की जाती है । ये प्रदेश स्रोत और निर्गम इलेक्ट्रोड (drain) कहलाते हैं जिनके साथ निम्न ओमीय प्रतिरोध संपर्क किए जाते हैं । स्रोत से निर्गम इलेक्ट्रोड की विद्युत् - धारा का नियंत्रण द्वार इलेक्ट्रोड पर विभव लगाकर किया जाता है जिससे चालक चैनल और / अथवा चैनल के गतिशील वाहकों की संख्या पर प्रभाव पड़ता है । उच्च निवेश प्रतिबाधा के कारण द्वार - स्रोत, निवेश टर्मिनलों और निर्गम इलेक्ट्रोड - स्रोत के निर्गम के मध्य शक्ति लब्धि प्राप्त हो जाती है । समेकित परिपथों में इनका खूब उपयोग किया जा रहा है । सभी इलेक्ट्रॉनीय युक्तियों में अब ट्रांजिस्टरों का खूब उपयोग हो रहा है । प्रवर्धक के रूप मे ये कई गीगा हर्ट्ज तक की आवृत्तियों तक और सैकड़ों वाट तक की शक्ति के लिए उपयोग सिद्ध हुऐ हैं । इनका एक प्रमुख उपयोग कंप्यूटरों में स्विच के रूप मे किया जाता है ।
transistor characteristics
ट्रांजिस्टर अभिलक्षण
वक्रों का एक सेट जो ट्रांजिस्टर के विभिन्न प्रकार के संबंधनों के अनुसार निवेश और निर्गत धाराओं और वोल्टताओं के बीच संबंद दर्शाता है । ट्रांजिस्टर संबंधनों के मुख्य प्रकार निम्नलिखित तीन हैः- 1. उभयनिष्ठ आधार संबंधन । 2. उभयनिष्ठ संग्राहक संबंधन । 3. उभयनिष्ठ उत्सर्जक संबंधन ।
transistor current gain
ट्रांजिस्टर धारा लब्धि
1. उभयनिष्ठ आधार संवर्धन सहित संधि ट्रांजिस्टर के प्रसंग में संग्राहक में अल्प धारा- परिवर्तन का इसको उत्पन्न करने वाली उत्सर्जक की धारा में होने वाले अल्प परिवर्तन के साथ अनुपात । इसे ऐल्फा (α) कहते हैं जो सदा 1 से कम होता है ।
2. उभयनिष्ठ उत्सर्जक संबंधन के लिए संग्राहक धारा के परिवर्तन का इसको उत्पन्न करने के लिए आवश्यक आधार धारा में होने वाले अल्प परिवर्तन के साथ अनुपात । इसे बीटा (β) कहते हैं जो सदा 1 से बहुत अधिक होता है । और के परस्पर निम्नलिखित संबंध हैः- (Formula)
3. उभयनिष्ठ संग्राहक संबंधन के लिए उत्सर्जक धारा के परिवर्तन का इसको उत्पन्न करने के लिए आवश्यक आधार धार में होने वाले अल्प परिवर्तन के साथ अनुपात । इसे γ कहते हैं जो β के लगभग बराबर होता है ।
transistor equivalent circuit
ट्रांजिस्टर तुल्य परिपथ
परिपथ-विश्लेषण में ट्रांजिस्टर का एक तुल्य परिपथ जिसे चार टर्मिनल वाले परिपथ-जाल से दर्शाया जाता है, जिनमें से दो टर्मिनल उभयनिष्ठ होते हैं । इसके द्वारा ट्रांजिस्टर की क्रिया केवल चार स्वतंत्र चरों द्वारा समझाई जा सकती है जो तुल्य परिपथ-जाल में निवेश और निर्गत धारा और वोल्टताओं के संगत होते हैं । ट्रांजिस्टर संबंधन के तीन मुख्य प्रकारों में प्रत्येक के लिए अनेक तुल्य परिपथ काम में लाए जाते हैं ।