परमाणु-नाभिक के प्रमुख घटकों अर्थात् न्यूट्रॉन और प्रोटॉन का सामान्य नाम । इस शब्द का प्रयोग इस द्रव्यमान वाले मूल कणों के वर्ग नाम के रूप में भी होता है ।
nautical almanac
नाविक पंचांग
एक वार्षिक प्रकाशन जिसमें प्रायः आगामी तीन वर्षों से संबद्ध खगोलीय विवरण दिया रहता है । इसमें सूर्य, चंद्र और अन्य खगोलीय पिंडों की स्थितियों की सारणियाँ और नाविकों एवं खगोलविदों के काम में आने वाले अन्य आंकड़े दिए होते हैं ।
nautical mile
समुद्री मील
पृथ्वी के पृष्ठ के किसी वृहद्ध वृत्त के 1/21600 वें भाग की लंबाई । क्योंकि पृथ्वी बिल्कुल गोल नहीं । इसलिए यह लंबाई सर्वत्र समान नहीं रहती । खगोलविदों ने इसे 1852 मीटर के रूप में मानकित किया है ।
nebula
नीहारिका
खगोलीय द्रव्य का कोई विशाल जमघट जो धुंधले धब्बे अथवा बादल की तरह आकाश में दिखलाई पड़ता है और जिनमें से अधिकांश को उनके घटकों में वियोजित करना कठिन है । नीहारिकोओं को दो मुख्य वर्गों में रखा जा सकता हैः
1. गांगेय नीहारिकाएँ जो हमारी गैलेक्सी की अंग हैं और
2. परागांगेय नीहारिकाएँ जो इसके बाहर हैं ।
negative
ऋण, ऋणात्मक
(वह संख्या) जिसका मान शून्य से कम हो: संख्या अक्ष पर निरूपित करने पर जिसका स्थान शून्य की बाई ओर आती है ।
Neptune
नेप्ट्यून
सौर परिवार का एक सुदूर ग्रह जिसकी कक्षा सूर्य से दूरी के क्रम में आठवाँ है और जिसके आगे केवल एक ग्रह प्लूटो को ही खोज निकाला गया है । इस ग्रह को पहले पहल गैले ने बर्निन - वेधशाना से देखा था । सूर्यसे इसकी दूरी 27930 लाख मील है । इसके व्यास की लम्बाई 31,000 मील है और परिक्रमण - काल 165 साल है ।
neutral axis
उदासीन अक्ष
किसी झुकाए जाने वाले दंड की वह रेखा जिसकी दिशा में अनुदैर्ध्य प्रतिबल शून्य रहता है अर्थात् जिसकी दिशा में स्थित दंड के रेशे की लंबाई बढ़ती या घटती नहीं है ।
neutral equilibrium
उदासीन संतुलन, उदासीन साभ्य
किसी पिंड की वह संतुलन जिसमें पिंड पर लगे हुए बल पिंड को थोड़ा-सा हिलाने पर न तो उसे पूर्व स्थिति में ही लौटाने का प्रयत्न करें और न ही उसे अन्यत्र विस्थापित करें अर्थात् विस्थापित स्थिति में भी पिंड संतुलन में रहे ।
new moon
अमावस्या, नव चंद्र
चंद्र की उस समय की कला जब वह सूर्य के साथ युति में हो । इस समय चंद्र क अदीप्त अर्धभाग पृथ्वी की तरफ होने के कारण वह हमें दिखलाई नहीं पड़ता ।
Newton`s law of motion
न्यूटन के गति नियम
न्यूटन के गति-नियम निम्नलिखित हैः 1. प्रत्येक पिंड जब तक विरामावस्था में अथवा एक ऋजु रेखा की दिशा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब तक कि किसी बाहरी बल द्वारा उसे अपनी अवस्था बदलने के लिए बाध्य न करे दिया जाए ।
2. संवेग-परिवर्तन की दर लगाए हुए बल के अनुपात में होती है और यह उस ऋजु रेखा के अनुदिश होता है जिसमें बल कार्यकरता है । सांकेतिक चिन्हों में उक्त तथ्य इस प्रकार लिखा जा सकता हैः Fαma, यहाँ F लगाया हुआ बल है, m पिंड का द्रव्यमान है, तथा a उस पिंड से उत्पन्न त्वरण है ।
3. प्रत्येक क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है जो क्रिया के समान और विपरीत दिशा में होती है ।