वैयक्तिक यथार्थवाद
परम सत्ता अर्थात् ईश्वर को एक अतिप्राकृतिक व्यक्तित्त्व तथा उसकी सृष्टि में आत्मिक के साथ-साथ भौतिक पदार्थों का भी अस्तित्त्व मानने वाला सिद्धांत।
Perspectivism
संदर्शवाद
विभिन्न वैकल्पिक संप्रत्ययों परिप्रेक्ष्यों एवं विश्वासों के माध्यम से बाह्य विश्व की व्याख्या।
Persuasive Definition
प्रभावी परिभाषा, प्रत्यायक परिभाषा
प्रो. सी. एल. स्टीवेंसन के द्वारा सर्वप्रथम ऐसी परिभाषा को दिया गया नाम जिसका प्रयोजन श्रोता या पाठक के संवेगों को प्रभावित करके उससे कोई दृष्टिकोण स्वीकार या अस्वीकार करवाना होता है, जो कि किसी संवेगार्थक शब्द के, जैसे शुभ-अशुभ इत्यादि के प्रयोग से किया जाता है।
Perverse Ratio
तर्कबुद्धि विपर्यय, कुतर्क विपर्यास
अनुभव और तार्किक सिद्धांतों का उल्लंधन करने वाली बुद्धि।
Pessimism
निराशावाद
वह मत कि संसार में दुःख, मृत्यु, अशुभ, ही सत्य है, शेष सभी कुछ, सुख इत्यादि क्षणिक और मिथ्या है। आधुनिक युग में शोपेनहावर और प्राचीन काल में बुद्ध ('सर्व दुःखम') इस मत के मुख्य अनुयायी हुए।
Pessimistic Voluntarism
निराशावादी संकल्पवाद
नीतिशास्त्र का वह मत जिसके अनुसार हमारे संकल्प का पर्यवसान निराशा में होता है।
Petites Perceptions
सूक्ष्म प्रत्यक्ष
लाइब्नित्ज़ के द्वारा अस्फुट तथा अचेतन प्रत्यक्षों के लिए प्रयुक्त पद। लाइब्नित्ज़ ने चेतना में मात्रा-भेद मानते हुए निम्न स्तर के चिदणुओं में इनकी कल्पना की थी, जिसमें फ्रॉयड के ''अचेतन मन'' के आधुनिक सिद्धांत की झलक दिखाई देती है।
Petitio Principii
आत्माश्रय-दोष
एक तर्कदोष, जो तब उत्पन्न होता है जब निष्कर्ष आधारवाक्यों में पहले से ही निहित होता है। जे. एस. मिल ने एरिस्टॉटल के न्यायवाक्य में उपर्यक्त दोष का निरूपण किया है।
Phenomenalism
सवृत्तिवाद, दृश्यप्रपंचवाद
वह सिद्धांत कि ज्ञान संवृति, दृश्य प्रपंच या दृश्य जगत् तक ही सीमित है, जिसके अंतर्गत प्रत्यक्षगम्य भौतिक विषय और अंतर्निरीक्षणगम्य मानसिक विषय आते हैं। इसको माननेवाले साधारण वस्तुविषयक कथनों को संवृति-विषयक कथनों में अर्थात् इंद्रिय-प्रदत्तों की भाषा में परिवर्तित करने की आवश्यकता बताते हैं। वे संवृत्ति के पीछे कोई सत्ता या तो मानते नहीं या उसे अज्ञेय कहते हैं।
Phenomenology
संवृतिशास्त्र, दृश्यप्रपंचशास्त्र
दृश्य-प्रपंच का वर्णन-विश्लेषण करने वाला शास्त्र। सर्वप्रथम कांट के समकालीन जर्मन दार्शनिक लैम्बर्ट द्वारा ''आभासों की मीमांसा'' के लिये प्रयुक्त शब्द। स्वयं कांट द्वारा तत्त्वमीमांसा की उस शाखा के लिए प्रयुक्त शब्द जो गति और गतिहीनता का वस्तुओं के विधेयों के रूप में विवेचन करती है। हेगेल के द्वारा किसी तत्त्व को उत्तरोत्तर अधिक विकसित अभिव्यक्तियों का अध्ययन करने वाले शास्त्र के अर्थ में प्रयुक्त। परन्तु सर्वाधिक प्रचलित अर्थ में यह एडमंड हुसर्ल (edmund husserl) द्वारा दर्शन में चलाए गए एक आंदोलन का नाम है।