प्रसंभाव्यता
प्रसंभाव्य होने की अवस्था या विशेषता। किसी बात को ''प्रसंभाव्य'' तब कहा जाता है जब उसका घटित होना असंभव तो नहीं होता परन्तु इसका घटित होना अनिवार्य भी नहीं होता। इस प्रकार इस अवस्था में मात्रा-भेद होता है और उसके घटित होने की अनिवार्यता को तथा असंभाव्यता को 0 (Zero) मानते हुए उसे एक भिन्न के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जिसका अंश अनुकूल विकल्पों की संख्या तथा हर अनुकूल और प्रतिकूल विकल्पों की संख्याओं का योग होता है।
Problematic Proposition
समस्यात्मक प्रतिज्ञप्ति
वह प्रतिज्ञप्ति जिसमें किसी घटना के घटित होने को न तो अनिवार्य समझा जाये और न असंभाव्य, बल्कि उसके द्वारा यह कथन किया जाए कि उक्त घटना घटित हो भी सकती है अथवा नहीं भी घटित हो सकती है। उदाहरण के लिए : यह कथन '' शायद वर्षा होगी'', समस्यात्मक प्रतिज्ञप्ति है।
Processes Simulating Induction
आभासी आगमन
पूर्ण आगमन, तर्कसाम्य-आगमन और तथ्यानुबंधी आगमन के लिए प्रयुक्त पद, जिनहें आगमनोचित प्लुति (inductive leap) के अभाव के कारण सही अर्थ में आगमन नहीं माना गया है। देखिए `perfect induction`, `induction by parity of reasoning', और `colligation of facts`।
Process Philosophy
संभवन् दर्शन
दर्शन की वह प्रवृत्ति जिसमें कूटस्थ सत् की अपेक्षा संभवन अथवा क्रिया सातत्य पर बल दिया जाता है।
Progressive Train Of Reasoning
प्रगामी तर्कमाला
दो या अधिक न्यायवाक्यों का वह संयोग जिसमें पहले पूर्वन्यायवाक्य (prosyllogism) होता है और फिर उत्तर-न्यायवाक्य (episyllogism) जो आगामी न्यायवाक्य के लिए पूर्वन्यायवाक्य बनता है और इसी प्रकार तर्क अंतिम निष्कर्ष की ओर अग्रसर होता है।
उदाहरण :
1. सभी ब स हैं।
सभी अ ब हैं।
∴ सभी अ स हैं।
2. सभी स द हैं।
सभी अ स हैं।
∴ सभी अ द हैं।
3. सभी द य हैं।
सभी अ द हैं।
∴ सभी अ य हैं।
Proper (Or Special) Sensibles
विशिष्ट संवेद्य
सामान्य संवेद्यों के विपरित वे विषय जिनका ज्ञान केवल एक ही इंद्रिय के माध्यम से होता है, जैसे प्रकाश जो केवल चक्षुगम्य है।
Property (Or Proprium)
गुणधर्म
पारंपरिक तर्कशास्त्र में, वह विशेषता जो पद के गुणार्थ का भाग तो नहीं होती (अर्थात् पद की परिभाषा में शामिल नहीं होती) परन्तु उसका फल या उससे निगमित होती है और इस प्रकार उसका अनिवार्य परिणाम होती है, जैसे `त्रिभुज के तीनों कोणों का योग दो समकोण होना।` त्रिभुज की परिभाषा है तीन भुजाओं से घिरी हुई समतलाकृति, जिससे उदाहृत विशेषता निगमित होती है।
Proposition
प्रतिज्ञप्ति
पारंपरिक तर्कशास्त्र में किसी निर्णय (judgement) की शाब्दिक अभिव्यक्ति को प्रतिज्ञप्ति के नाम से अभिहित किया जाता था किंतु आधुनिक तर्कशास्त्र के अनुसार किसी वाक्य (sentence) का वह अर्थ जो यथार्थ अथवा अयथार्थ हो सकता है, उसे प्रतिज्ञप्ति कहते हैं। उदाहरण के लिए - `आपकी कक्षा में कितने विद्यार्थी हैं?` यह एक वाक्य है। किंतु `हमारी कक्षा में पचास विद्यार्थी हैं` - एक प्रतिज्ञप्ति है, जो या तो यथार्थ है अथवा अयथार्थ। यद्यपि प्रत्येक प्रतिज्ञप्ति वाक्य है किन्तु प्रत्येक वाक्य प्रतिज्ञप्ति का रूप धारण नहीं कर सकता।
Prosyllogism
पूर्वन्यायवाक्य
तर्कमाला अर्थात् न्यायवाक्यों की श्रृंखला में वह न्यायवाक्य जिसका निष्कर्ष दूसरे न्यायवाक्य में एक आधारवाक्य बनता है।
उदाहरण : progressive train of reasoning के अंतर्गत दी हुई तर्कमाला में प्रथम (दूसरे के संबंध में) तथा द्वितीय (तीसरे के संबंध में)।