प्राग्दर्शन
हॉकिंग के अनुसार, दर्शन के विकास की प्रारंभिक अवस्था, जिसमें जीवन तथा विश्व से संबंधित विचारों एवं विश्वासों को बिना किसी आलोचना के स्वीकार कर लिया जाता था।
Presentationism
पुरोधानवाद
प्रतिनिधानवाद (representationism) के विपरीत यह ज्ञानमीमांसीय सिद्धांत ज्ञान के लिए केवल दो घटकों के अस्तित्व में ही विश्वास करता है, अर्थात् प्रत्यक्ष में आत्मा को वस्तु का अपरोक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। बौद्धों का 'वैभाषिक संप्रदाय' इसी पुरोधानवाद में विश्वास रखता है।
Primary Qualities
प्राथमिक गुण, मूल गुण
लॉक के अनुसार गौण गुणों (secondary qualities) के विपरीत वस्तुओं के स्वकीय गुण, जैसे ठोसपन, विस्तार, आकृति, गति, स्थिति और संख्या, जिनके बिना वस्तुओं को सोचा ही नहीं जा सकता।
Prime Matter
मूल द्रव्य
एरिस्टॉटल ने अपने 'तत्त्वविज्ञान' की व्याख्या 'द्रव्य' (matter) एवं स्वरूप (form) के माध्यम से की है। यद्यपि संसार की प्रत्येक वस्तु में द्रव्य और स्वरूप दोनों पाए जाते हैं किंतु विकास की प्रथम अवस्था में हम एक ऐसी वस्तु की कल्पना कर सकते हैं जिसमें केवल द्रव्य हो किंतु स्वरूप का आत्यन्तिक अभाव पाया जाता है। उसी प्रकार विकास की चरम अवस्था में हम एक ऐसी वस्तु की कल्पना कर सकते हैं, जिसमें केवल 'स्वरूप' (form) पाया जाता हो एवं जिसमें द्रव्य का आत्यन्तिक अभाव हो। ऐसी स्थिति में विकास की प्राथमिक अवस्था जो द्रव्यमात्र होगी, उसे एरिस्टॉटल ने 'मूल-द्रव्य' (prime matter) के नाम से अभिहित किया है।
Prime Mover
आद्य चालक, आद्य प्रवर्तक
एरिस्टॉटल के अनुसार, वह जो सभी परिवर्तनों का आदि कारण है और स्वयं अपरिवर्तित रहता है, जैसे ईश्वर।
Primitive Proposition
आद्य प्रतिज्ञप्ति
प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के जनकों में से एक 'पेआनो' (Peano) के अनुसार किसी निगमनात्मक तंत्र में उन प्रतिज्ञप्तियों में से एक जिन्हें सिद्ध नहीं किया जाता बल्कि प्रारम्भ में ही सत्य मान लिया जाता है तथा उन्हें निगमनों का आधार बनाया जाता है। उसे आद्य प्रतिज्ञप्ति कहते हैं। वह न तो 'स्वतःसिद्ध' है और न अनिवार्य रूप से सत्य है तथा ऐसी भी बात नहीं है कि उसे सिद्ध किया ही नहीं जा सकता। फिर भी वह सत्य रूप में मान्य होता है। तर्कशास्त्र में डब्ल्यू. ई. जॉनसन पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने तर्कशास्त्र (logic) के प्रथम-भाग में 'आद्य-प्रतिज्ञप्ति' (primitive proposition) की कल्पना की थी। इस प्रतिज्ञप्ति को 'उद्देश्यहीन-प्रतिज्ञप्ति' (subjectless proposition) अथवा विस्मय-बोधक प्रतिज्ञप्ति (exclamatary proposition) के नाम से भी अभिहित किया जाता है।
Principle Of Economy
लाघव-न्याय
इस सिद्धांत का प्रमुख तात्पर्य यह है कि अनावश्यक रूप में तात्त्विक इकाईयों की संख्या में वृद्धि नहीं करनी चाहिए। इस सिद्धांत को भारत में ' कल्पना-लाघव' या 'लाघव-न्याय' के नाम से जाना जाता है। विस्तार के लिए `occam's razor` को देखिए।
Private Attitude Theories
व्यक्तिगत-अभिवृत्ति-सिद्धांत
नीतिशास्त्र में वे सिद्धांत जो कर्म के औचित्य या शुभत्व को व्यक्ति की निजी अभिवृत्ति पर आधारित मानते हैं, जैसे, यह सिद्धांत कि शुभ वह है जो मुझे अच्छा लगता है (भले ही अन्यों को वह अच्छा न लगे)।
Private Term
वैकल्प-पद
वह पद जो वर्तमान में किसी गुण का अभाव बताता है परन्तु साथ ही जिसमें यह निहित होता है कि उस गुण की क्षमता वस्तु में है, जैसे ''अंधा'', ''बहरा'', ''वंध्या'' इत्यादि।
Probabilism
प्रसंभाव्यतावाद
प्राचीन यूनानी संशयवादियों का वह सिद्धांत कि किसी भी विषय में निश्चयात्मक ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं है, अतः समस्त कार्यों तथा आस्थाओं का आधार प्रसंभाव्यता को ही स्वीकार करता है।