प्राक्संज्ञान, प्राग्बोध
भविष्य में घटने वाली किसी घटना का परामानसिकीय बोध।
Predesignate Proposition
पूर्वनिर्दिष्ट प्रतिज्ञप्ति
वह प्रतिज्ञप्ति जिसका परिमाण (अर्थात् सर्वव्यापित्व या अंशव्यापित्व) पूर्णतः व्यक्त होता है, जैसे ''सभी मनुष्य मरणशील हैं'', ''कुछ अपराधी बुद्धिमान होते हैं'' इत्यादि।
Predestination
पूर्वनियति
वह नैतिक एवं धार्मिक विश्वास कि मनुष्य के कर्म एवं उत्थान-पतन ईश्वर द्वारा निर्धारित होते हैं।
Predicables
विधेय-धर्म, वाच्यधर्म
एरिस्टॉटल के अनुसार, विधेय के वे पाँच प्रकार जिनका किसी उद्देश्य के बारे में कथन या निषेध किया जा सकता है। ये हैं : परिभाषा, जाति, अवच्छेदक, गुणधर्म और आकस्मिक गुण। पॉर्फीरी और बाद के तर्कशास्त्रियों ने परिभाषा के स्थान पर उपजाति को लिया।
Predicament
दशा, वर्ग, पदार्थ
कांट के दर्शन में, बोधशक्ति (understanding) के सहज, प्रागनुभविक, आकारों के लिए प्रयुक्त शब्द। ऐसा प्रत्येक आकार निर्णय या विधेयन का एक रूप है और चूँकि निर्णय बारह प्रकार के हैं अतः ये भी बारह माने गए हैं, जो इस प्रकार हैं : समग्रता, अनेकता; एकता; अस्तित्व, नास्तित्व, सीमितत्व; द्रव्यत्व (समवाय); कारणत्व (आश्रितत्व), अन्योन्यत्व; संभवता, सत्ता, अनिवार्यता।
Predicative View
विधेय-मत
उद्देश्य और विधेय के संबंध के विषय में वह मत कि प्रतिज्ञप्ति के उद्देश्य को उसके वस्त्वर्थ (denotation) में और विधेय को उसके गुणार्थ (connotation) में लेना चाहिए। तदनुसार `सभी मनुष्य मरणशील हैं` का अर्थ यह होगा कि राम, श्याम इत्यादि जितने भी मनुष्य हैं उनमें मरणशीलता नामक गुण पाया जाता है।
Pre-Established Harmony
पूर्वस्थापित सामंजस्य
लाइब्नित्ज़ के अनुसार, सभी चिदणुओं के मध्य और विशेषतः मन और शरीर के मध्य पहले से ही स्थापित सामंजस्य, जिसके फलस्वरूप उनके परस्पर स्वतंत्र होते हुए भी उनकी क्रियाओं में उसी प्रकार सामंजस्य पाया जाता है जिस प्रकार विभिन्न वाद्य यंत्रों में स्वतंत्र क्रिया होते हुए भी एकतान संगीत का निर्माण होता है।
Preformationism
पूर्वरचनावाद
वह सिद्धांत कि जीव के सभी अवयव पहले से निर्मित होते हैं और सूक्ष्म रूप में जनन-कोशिका या बीज के अंदर विद्यमान होते हैं।
Prehension
प्राग्ग्रहण
ए. एन. ह्वाइटहेड (1861-1947) के द्वारा उपलब्धि (संवेदन, प्रत्यक्ष) के आद्य रूप के लिए प्रयुक्त शब्द।
Premise
आधारिका
वह प्रतिज्ञप्ति जो दी हुई होती है या जिसे सत्य मानकर चला जाता है और जिससे तर्कशास्त्र के नियमों के अनुसार एक नई प्रतिज्ञप्ति निष्कर्ष के रूप में प्राप्त की जाती है। एक या अधिक ऐसी प्रतिज्ञप्तियाँ निष्कर्ष का आधार बन सकती हैं।