जब मीठी चीज खाने को मिलती है, तब माँ भी मीठी लगती है।
सभी प्रकार के संबंधों के मूल में पेट ही प्रधान कारण होता है। अच्छा खाना खिलाने के कारण ही माँ भी प्यारी लगती है। माँ यदि खाना न दे, तो पुत्र उससे अपना संबंध नहीं रखेगा।
मतलब के संसार के इस कटु सत्य को स्पष्ट करने तथा पारस्परिक संबंधों के मूल में रहने वाली पेट की समस्या को बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे स्वार्थी लोगों के लिए होता है, जो अपना स्वार्थ साधने के लिए जहाँ लाभ दीखता है, वहाँ पहुँच जाते हैं।
जिहां-जहां, दार-दाल, भात-पका हुआ चांवल, तिहां-वहां
जिहाँ बरदी, तिहाँ बरदा उपास।
जहाँ बरदी, वहाँ बरदा उपवास।
जहाँ अधिक गायें होती हैं, वहाँ वे पहले से पहुँच कर चारा समाप्त कर देती हैं। बैल काम से लौटते हैं, तो वहाँ चारा नहीं मिलता।
जहाँ अधिक स्त्रियाँ होती है, वहाँ मर्दों को समय पर भोजन नहीं मिल पाता, क्योंकि हर स्त्री यही सोचती है कि मैं क्यों खाना बनाऊं, वह बनायेगी, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
बरदी-मवेशियों का झुंड, जिहां-जहां, तिहां-वहां, उपास-उपवास
जिहाँ राम रमाय न, तिहाँ कुकुर कटाय न।
जहाँ राम-रामायण, वहाँ कुत्तों की चिल्लाहट।
जहाँ हरि चर्चा हो रही हो, वहाँ कुत्तों का भौंकना खल जाता है।
जब किसी चर्चा के बीच कोई व्यक्ति विघ्न उत्पन्न कर दै, तब यह कहावत कही जाती है।
जिसके घर में पत्नी की चलती हो, वहाँ पति मृत्युवत् हो जाता है।
पत्नी, पति के बाह्य क्रिया-कलापों में हस्तक्षेप शुरू कर देती है, जिससे पति की स्वतंत्रता तथा उसके कार्य पर असर पड़ता है, जो लोगों की दृष्टि में अच्छा नहीं समझा जाता।
जिसके घर में पत्नी का वर्चस्व हो, वहाँ पति की बातें नहीं चलती, जिससे उसके दोस्तों के बीच उसकी खिल्ली उड़ती है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।