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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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जिहाँ खाई मीठ, तिहाँ माई मीठ।
जब मीठी चीज खाने को मिलती है, तब माँ भी मीठी लगती है।
सभी प्रकार के संबंधों के मूल में पेट ही प्रधान कारण होता है। अच्छा खाना खिलाने के कारण ही माँ भी प्यारी लगती है। माँ यदि खाना न दे, तो पुत्र उससे अपना संबंध नहीं रखेगा।
मतलब के संसार के इस कटु सत्य को स्पष्ट करने तथा पारस्परिक संबंधों के मूल में रहने वाली पेट की समस्या को बताने के लिए यह कहावत कही जाती है।
जहां-जहां, खाई-खाया, मीठ-मीठा, तिहां-वहां, माई-मां

जहाँ गुर, तिहाँ चाँटी।
जहाँ गुड़, वहाँ चींटी।
लोग वहीं जाते हैं, जहाँ उनका स्वार्थ सधता है।
जिधर कुछ मिलता है, उधर ही लोगों के आकर्षण को देखकर यह कहावत कही जाती है।
जिहां-जहां, गुर-गुड़, तिहां-वहां, चांटी-चींटी

जिहाँ चार बाँभन, तिहाँ परै लाँघन।
जहाँ चार ब्राह्मण, वहाँ पड़े लंघन।
जहाँ चार ब्राह्मण होंगे, वहाँ प्रत्येक दूसरे के जिम्मे खाना बनाने का काम छोड़ देता है, जिससे खाना कोई बनाता नहीं।
जब आपस के लोग मिल कर किसी काम में गड़बड़ी उत्पन्न कर लेते हैं, तब यह कहावत कही जाती है।
जिहां-जहां, बांभन-ब्राम्हण, तिहां-वहां, परै-पड़ना, लांघन-भूखा रहना

जिहाँ-जिहाँ दार-भात, तिहाँ-तिहाँ माधोदास।
जहाँ-जहाँ दाल-भात, वहाँ-वहाँ माधोदास।
स्वार्थी लोग हर जगह अपना काम निकाल लेते हैं।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे स्वार्थी लोगों के लिए होता है, जो अपना स्वार्थ साधने के लिए जहाँ लाभ दीखता है, वहाँ पहुँच जाते हैं।
जिहां-जहां, दार-दाल, भात-पका हुआ चांवल, तिहां-वहां

जिहाँ बरदी, तिहाँ बरदा उपास।
जहाँ बरदी, वहाँ बरदा उपवास।
जहाँ अधिक गायें होती हैं, वहाँ वे पहले से पहुँच कर चारा समाप्त कर देती हैं। बैल काम से लौटते हैं, तो वहाँ चारा नहीं मिलता।
जहाँ अधिक स्त्रियाँ होती है, वहाँ मर्दों को समय पर भोजन नहीं मिल पाता, क्योंकि हर स्त्री यही सोचती है कि मैं क्यों खाना बनाऊं, वह बनायेगी, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
बरदी-मवेशियों का झुंड, जिहां-जहां, तिहां-वहां, उपास-उपवास

जिहाँ राम रमाय न, तिहाँ कुकुर कटाय न।
जहाँ राम-रामायण, वहाँ कुत्तों की चिल्लाहट।
जहाँ हरि चर्चा हो रही हो, वहाँ कुत्तों का भौंकना खल जाता है।
जब किसी चर्चा के बीच कोई व्यक्ति विघ्न उत्पन्न कर दै, तब यह कहावत कही जाती है।
कुकुर-कुत्ता, जिहां-जहां, रमाय-रामायण, तिहां-वहां, कटाय-कटाना

जिहाँ होइस बिहान, तिहाँ धरिस धियान।
जहाँ सुबह हुई, वहाँ अपने ध्यान में लगा।
सुबह हुई नहीं कि अपने व्यर्थ के काम में लग जाता है।
सुबह हुई नहीं अपने खाने-पीने के पीछे लग जाने वाले व्यक्ति को कुछ काम न करते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
बिहान-सुबह, जिहां-जहां, होइस-होना, तिहां-वहां, धियान-ध्यान

जुच्छा गर ले घोंघी नीक।
खाली गले से घोंघी की माला अच्छी।
कुछ न होने से अच्छा-बुरा कुछ भी हो, वही अच्छा है।
किसी वस्तु के अभाव में उसका थोड़-बहुत या अच्छा-बुरा कुछ भी होना श्रेयस्कर है। यह बताने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
घोंघी-तालाब, नदी, आदि में मिलने वाली सीप जैसी गोल वस्तु, जुच्छा-खाली

जुन्ना ल घुना खइस त नवा मुलमुलाइस, नवा ल घुना खइस त जुन्ने काम अइस।
पुराने को घुन लगा, तो नया सामने आया, नए को घुन लगा, तो पुराना ही काम आया। 'नया नौ दिन, पुराना सौ दिन।'
नया कुछ दिनों के लिए होता है, परंतु पुराना ही हमेशा साथ देता है।
नई वस्तु की चार दिनों की चमक-दमक के लिए यह कहावत कही जाती है।
जुन्ना-पुराना, घुना-घुन, खइस-खाना, नवा-नया, मुलमुलाइस-आगे आना

जेखर घर डौकी सियान, तेखर मरे बिहान।
जिसके घर में पत्नी की चलती हो, वहाँ पति मृत्युवत् हो जाता है।
पत्नी, पति के बाह्य क्रिया-कलापों में हस्तक्षेप शुरू कर देती है, जिससे पति की स्वतंत्रता तथा उसके कार्य पर असर पड़ता है, जो लोगों की दृष्टि में अच्छा नहीं समझा जाता।
जिसके घर में पत्नी का वर्चस्व हो, वहाँ पति की बातें नहीं चलती, जिससे उसके दोस्तों के बीच उसकी खिल्ली उड़ती है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
जेखर-जिसका, डौकी-पत्नी, सियान-बुर्जुग, तेखर-उसका


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