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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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घाट-घाट के पानी पीए हे।
घाट-घाट का पानी पिए हुए।
कई जगह का अनुभव प्राप्त।
ऐसी स्त्री जो कई पति कर चुकी हो और कहीं स्थायी रूप से न रह पाई हो, उसकी चरित्रहीनता को लक्ष्य करके या इसी प्रकार स्थान-स्थान पर दाँव-पेंच खेलने वाले चालू आदमी के लिए यह कहावत कही जाती है।
पीए-पीना

घानी कस बइला किंजरत हे।
कोल्हू के बैल के समान घूमता है।
गोल-गोल घूमना और कोई काम नहीं करना।
कोई काम न करके इधर उघर घूमकर समय बरबाद करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
कस-जैसे बइला-बैल, किंजरत घुमना

घी देत बाँभन नरियाय।
मिलते हुए घी को न लेने से ब्राह्मण चिल्लाता है।
मिलते हुए अवसर के प्रति उदासीनता।
जब कोई व्यक्ति किसी को कोई वस्तु ऐसी प्रदान करता है, जो उसे प्रिय है और उसे उस वस्तु लेने के लिए आशा के अनुसार मना नहीं करना चाहिए, लेकिन वह उसे लेने से इनकार कर देता है, तब यह कहावत कही जाती है।
नरियाय-चिल्लाता है, बांभन-ब्राम्हण, देत-देना

घी ढरक गे पिसान माँ।
घी आटे में गिर गया।
यदि घी आटे में गिर जाए, तो घी का नुकसान तो हो जाता है, परंतु वह उपयोग में भी आ जाता है।
काम में किसी को नुकसान हो जाए और नुकसान होने वाले व्यक्ति के हितैषियों को उससे लाभ हो जाए तो ऐसा नुकसान विशेष कष्टदायक नहीं होता।
ढरक-ढरकना, पिसान-आटा

घोड़-घोड़ी आन के पूछी थनवार के।
घोड़ा-घोड़ी दूसरे की तथा पुंछ सईस की।
सईस किसी दूसरे व्यक्ति के घोड़े की सेवा करता है, उस पर उसका कोई अधिकार नहीं होता। अलबत्ता उसकी पूँछ पर वह अधिकार करता है, क्योंकि उस के काट लेने पर भी घोड़े का मुल्य यथावत रहता है।
घोड़े की पूँछ के समान किसी भी बेकार वस्तु पर अधिकार व्यक्त करने के लेए यह कहावत कही जाती है।
आन-दूसरा, पूछी-पूंछ, थनवार-सईस

घोड़वा के रोग बेंदरवा माँ जाय।
घोड़े का रोग बंदर को जाए, तो वैद्य अपने उपचार से वही रोग बंदर को स्थानांतरित करके घोड़े को ठीक कर देता है।
NA
जब किसी के क्रोध का शिकार एक के बदले दूसरा हो जाता है, तब यह कहावत कही जाती है।
घोड़वा-घोड़ा, बेंदरवा-बंदर जाय-जाना

घोडवा बेच के सोवै।
घोड़ा बेच कर सोता है।
घोड़ा बेचने के लिए चिंतित व्यक्ति उसके बिक जाने पर निश्चिंत सोता है।
ऐसे ही किसी काम के पूर्ण हो जाने पर निश्चित होने वाले व्यक्ति तथा बहुत गहरी नींद में देर तक सोने वाले व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
सौवे-सोना

घोड़ी के लात ला घोड़े सहै।
घोड़ी के पैर का आधात घोड़ा ही सहन करता है।
घोड़ी के पैर का आघात मनुष्य बर्दाश्त नहीं कर सकता।
किसी पत्नी के अनावश्यक शौक आदि के खर्च का भार गरीब व्यक्ति सहन नहीं कर सकता। घोड़ी की भार घोड़ा ही बर्दाश्त करता है, उसी प्रकार किसी पत्नी की फिजूलखर्ची को संपन्न व्यक्ति ही बर्दाश्त कर सकता है।
ला-को, सहै-सहना

चट मँगनी, पट बिहाव।
चट मँगनी, पट ब्याह।
तुरंत कार्य।
किसी बात की उतावली करने या काम बहुत शीघ्र कर डालने पर इस कहावत का प्रयोग होता है।
बिहाव-विवाह

चटकन के का उधार।
थप्पड़ की क्या उधार।
जब किसी कारणवश किसी को मारने का अवसर आ पड़ता है, तब उसे मारा ही जाता है, 'बाद में मार लूँगा' कहकर छोड़ा नहीं जाता। जब किसी बात के कहने का समय हो, तो उसे उसी समय कहना चाहिए।
किसी बात का तुरंत जवाब देने के लिए यह कहावत कही जाती है।
चटकन-थप्पड़


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