गलत काम करने वाला दूसरे के साथ उसे करने में संकोच नहीं करता, क्योंकि कोई कार्य साथ-साथ करने में हानि आधी हो जाती है।
गलत कार्य में दूसरे का साथ लेने वाले व्यक्ति के परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
पादै-पादना
संझा के झड़ी, बिहनिया के झगरा।
शाम की झड़ी, सुबह का झगड़ा।
यदि शाम को झड़ी लग जाए, तो वह प्रायः रात तक चलती है। उसके शीघ्र बंद होने की आशा नहीं होती।
सुबह का झगड़ प्रायः दिनभर चलता है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
झड़ी-लगातार वर्षा, बिहनिया-सुबह
संझा के मरे ला कतेक ले रोहीं।
सायंकाल के मरे हुए के लिए कितना रोना।
यदि कोई व्यक्ति संध्या के समय मर जाए, तो उसके लिए सुबह ले जाते तक रोना पड़ना है।
यदि किसी काम के प्रारंभ में ही खराब लक्षण दिखलाई पड़ने लगे, तो उस के पूरा होने की आशा नहीं रहती, क्योंकि उसे कितना सुधारा जाएगा। ऐसी स्थिति में यह कहावत कही जाती है।
संझा-शाम, कतेक-कितना
संसा पंजा माँ परगे।
श्र्वास पंजे में पड़ गया।
मुसीबत में पड़ गया, जिससे मुक्ति पाना कठिन है। यदि श्र्वास के मार्ग में कोई रूकावट आ जाए, तो व्यक्ति का जीवन संकट में पड़ जाता है। चूहा यदि बिल्ली के पंजे में फँस गया, तो उससे उसका छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है।
मनुष्य के किसी मुसीबत में फँस जाने पर उसकी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
संसा-श्वास
सक्कर वाले ला सक्कर, टक्कर वाले ला टक्कर।
शक्कर वाले को शक्कर, टक्कर वाले को टक्कर।
जो जैसा करता है, वह वैसा ही पाता है।
कार्य के अनुसार फल मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
सक्कर-शक्कर
सगरी जाड़ नहक गे, त बाँभन कमरा बिसाइस।
ठंड बीत गई, तब ब्राह्मण ने कंबल खरीदा।
समय गुजार जाने के बाद काम करना।
कारण की समाप्ति के बाद कार्य करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है।
कमरा-कंबल
सगा माँ साढू, कलेवा माँ लाडू।
संबंधियों में साढू, पकवान में लूडू।
संबंधियों में अधिक साढू तथा पकवान में अधिक स्वादिष्ट लड्डू होता है।
यदि किसी व्यक्ति का ससुराल-पक्ष की ओर आकर्षण हो, तो यह कहावत कही जाती ह।
साढू-साली का पति
सत्यानास तौन माँ साढ़े सत्यानास।
सत्यानाश में साढ़े सत्यानाश।
जब कोई काम बिगड़ जाता है, तब उसे सुधारने के लिए अंतिम प्रयास किया जाता है, जिससे वह य तो सुधर जाए अथवा अगर बिगड़ना हो, तो और अधिक बिगड़ जाए।
ऐसी स्थिति में अंतिम प्रयास करते हुए यह कहावत कही जाती है।
सत्यानास-सत्यानाश, तौन-उसमें
सब कुकुर गंगा चल देहीं, त पतरी ला कोन चाँटही।
सब कुत्ते गंगा चल देंगे, तो पत्तल कौन चाटेगा।
यदि छोटे आदमी बड़े काम करने लगेंगे, तो फिर छोटों के काम कौन करेंगे।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे वक्त पर किया जाता है, जब कोई निम्न वर्ग का व्यक्ति उच्च वर्ग के व्यक्ति की बराबरी की बात करता है।
कुकुर-कुत्ता, पतरी-पत्तल, कोन-कौन
सब के ढूँढ़वा माँ तेल, त एखर मुँह माँ तेल।
सब के ढुँढ़वा में तेल, तो इस के मुँह में तेल।
तेल किसी पात्र में रखा जाता है, परंतु मुँह में तेल रखने की बात कहने वाला मुँह को ही पात्र बताकर अपनी बात को सत्य सिद्ध कर देता है।
कोई बातूनी व्यक्ति किसी असत्य बात को भी अपने ऊल-जलूल तर्कों से सत्य सिद्ध कर दे, तो यह कहावत कही जाती है।