जग में कई बार भलाई करने वाले की ही बुराई हो जाती है।
किसी की भलाई के लिए कुरबानी करने वाले को उल्टे यदि बुराई हाथ लगे, तब यह कहावत कही जाती है।
भल-भलाई, बर-के कारण, अनभल-बुराई, होय-होना
भाँवर मछरी दहरा माँ कूदे।
भाँवर के वक्त कन्या मल त्याग करना चाहती है।
भाँवर में बैठी हुई लड़की को भाँवर पड़ते तक बैठे रहना पड़ता है। इस बीच उठना वर्जित है। परंतु वह उठने के लिए टट्टी जाने का बहाना करती है। इससे उसकी शादी के बारे में अनिच्छा का पता लगता है।
जब कोई व्यक्ति ठीक काम के वक्त पर टाल-मटोल करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
भांवर-पाणिग्रहण, बेरा-वक्त, हगासी-मल त्याग करने की इच्छा
भाई के भरोसा माँ डौकी चलावे।
भाई के भरोसे पत्नी चलाना।
ऐसा व्यक्ति जो स्वयं कुछ काम नहीं करता, वह अपने भाई के भरोसे अपना उदर-पोषण करता है। पत्नी आ जाने पर भी वह कुछ न करके अपने भाई पर अवलंबित रहता है, जबकि उसे अपनी पत्नी के खर्च के लिए स्वयं कमाना चाहिए।
जो व्यक्ति दूसरों के भरोसे कोई कार्य करता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
डौकी-पत्नी, चलावे-चलाना
भागती भूत कथरिया लादै।
भागते भूत की गोदरी लादै।
भूत भाग गया, परंतु भागते समय गोदरी छोड़ गया। उसमें ही संतोष कर लेना चाहिए।
जिससे कुछ भी आशा न हो, उससे जो कुछ मिल जाए, उसे ही ठीक मान लेना चाहिए। ऐसे परिपेक्ष्य के लिए यह कहावत कही जाती है।
कथरिया-गोदरी, लादै-लादना
भागे मछरी जाँघ असन मोंठ।
भगी हुई मछली जाँघ जैसी मोटी थी।
पानी के अंदर जाल में आई हुई मछली यदि भाग जाए, तो उसके लिए पछतावा होता है। पछताने वाला किसी के द्वारा पूछे जाने पर उसे जाँघ जितनी मोटी बताता है।
कोई चीज हाथ से निकल जाने पर अधिक अच्छी मालूम पड़ने लगती है। ऐसी वस्तु की प्रशंसा सुनकर लोग इस कहावत का प्रयोग करते हैं।
भागे -भागी हुई, मछरी-मछली, असन-ऐसा ही, मोंठ-मोटा
भालू के मुँह माँ डूमर बोजै, तभो उगल दै।
भालू के मुँह में गूलर डाल दिया, तब भी उसे उसने उगल दिया।
जरूरत होने पर भी कोई व्यक्ति कभी-कभी वह चीज नहीं लेता।
किसी व्यक्ति के बिना प्रयास के कोई चीज दी जाए और फिर भी वह उसे लेने से इन्कार कर दे, तब उसके लिए यह कहावत कही जाती है।