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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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बेजतन के बीरवा बाढ़े जाय, जतन के बीरवा ला कीरा खाय।
बिना यत्न का पौधा बढ़ जाता है तथा जिस पौधे की सँभाल की जाती है, उसे कीड़ा खाता है।
कभी-कभी देखभाल के बावजूद पौधे मर जाते हैं।
जब किसी वस्तु की चिंता की जाए, वह बिगड़ रही हो तथा बिना देखरेख की वस्तु को कुछ नहीं हो रहा हो, तब यह कहावत कही जाती है।
बेजतन-बिना जतन का, बीरवा-पौधा, बाढ़े-बढ़ना, जाय-जाना, कीरा-कीड़ा, खाय-खाना

बेटा के नाव सलीम राखे, तभे बम्हनौटी चिन्हागे।
लड़के का नाम सलीम रखने से ब्राह्मणत्व का पता चल गया।
किसी ब्राह्मण ने अपने लड़के का नाम सलीम रखा उसके इस नाम से यह पता लग गया कि ब्राह्मण में ब्राह्मणत्व कितना है।
यदि कोई व्यक्ति अपने को अमीर बतलाता है, तो उस के रहन-सहन आदि के तौर-तरीके से ही मालूम हो जाता है कि वह अमीर है यह नहीं। किसी व्यक्ति की असलियत का पता उस के कार्य-कलापों से हो जाता है।
बम्हनौटी-ब्राह्मणत्व, तभे-तभी, चिन्हागे-पहचान हो गयी।

बेटी के दाइ बनिस रानी, बूढ़त काल माँ भरिस पानी।
लड़की की माँ रानी बन गई, बुढ़ापे में पानी भरना पड़ा।
कोई बूढ़ी स्त्री अपनी ऐसी लड़की के कारण, जो घर का सब काम स्वयं कर डालती है, रानी के समान हो गई। लड़की ने उसे रानी के समान सुख दिया। परंतु लड़की के ससुराल चली जाने से तथा घर में बहू आ जाने से उसे बाहर से पानी लाना पड़ा, क्योंकि नई बहू को पानी लाने के लिए बाहर कैसे भेजें।
बहू आने से आराम मिलना चाहिए था, परंतु उल्टे सास का काम बढ़ गय। सास को बहू आने के बाद काम करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
दाइ-मां, बनिस-बनना, बूढ़त-बुढ़ापा, भरिस-भरना

बेंदर का जाने आदा के स्वाद।
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
बंदर को अदरक का स्वाद थोड़े ही पता होता है।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो किसी वस्तु या व्यक्ति की कद्र न समझता हो।
आदा-अदरक, बेंदरा-बंदर, जाने-जानना

बेंदरा जब गिरही डारा धर के।
बंदर जब गिरेगा, डाल पकड़ कर।
बंदर एक डाल से दूसरी डाल पर कूदता है। कूदते समय वह पहली डाल को छोड़ता है और दूसरी डाल को पकड़ लेता है। कूदते समय यदि वह चूक जाए, तब भी उस के हाथ में डाल होती है। इसी प्रकार बनिए के संबंध में कहा जाता है कि वह जब जहाँ-कहीँ भी गिरेगा, कुछ देखकर ही गिरेगा।
जो व्यक्ति अपनी जाति-स्वभाव के अनुसार कार्य करता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
बेंदरा-बंदर, गिरही-गिरना, डारा-डाल, धर-पकड़

बैठन दे, त पीसन दे।
बैठने दो, तो पीसने दो।
थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना। यदि किसी स्त्री को बैठने का स्थान मिल जाए, तो वह पीसने का कार्य प्रारंभ कर देती है।
किसी व्यक्ति की उदारता के कारण उसकी किसी वस्तु पर आंशिक अधिकार मिलते ही उस पर अधिकाधिक आधिपत्य जमाने की चेष्टा करने वाले के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
पीसन-पीसना, बैठन-बैठना

बैरी अउ बँधना माँ कसर झन राखै।
दुश्मन और गाँठ में कमी नहीं करनी चाहिए।
दूश्मन को पूरी तरह कुचल डालने तथा गाँठ को अच्छी तरह कसने में कमी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन्हें जरा सी ढील मिलने में धोखा दे सकते हैं। में कमी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन्हें जरा सी ढील मिलने में धोखा दे सकते हैं।
दुश्मन को मजा चखा ही दो, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
बैरी-दुश्मन, अउ-और, बंधना-बंधन, झन-नहीं, राखै-रखना

बैरी बर ऊँच पीढ़ा।
दुश्मन के लिए ऊँचा आसन।
जब कोई व्यक्ति किसी के घर पहुँच जाता है, तब उसका सम्मान किया जाता है। यदि दुश्मन आ जाए, तो उसका सम्मान करना अच्छा समझा जाता है।
घर आए व्यक्ति का सम्मान करना भारतीय समाज में आवश्यक माना जाता है। इस नीति को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
बैरी-दुश्मन, बर-के कारण, ऊंच-ऊंचा, पीढ़ा-आसन

बोकरा के जीव छूटै, खवइया ला अलोना।
बकरे के प्राण गए, खाने वालों के लिए अलोना हो गया।
बकरे के प्राण गए और खाने वालों को मजा नहीं आया।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जिनके लिए कोई आदमी मर मिटे तब भी वे उस के प्रति कृतज्ञ न हों।
अलोना-नमकरहित, बोकरा-बकरा, छूटै-छूटना, खवइया-खाने वाला।

बोदरी हाट बर पागा।
बोदरी बाजार के लिए पगड़ी।
पास के गाँव के बाजार के लिए विशेष सजने की क्या आवश्यकता।
थोड़ी दूर जाने के लिए किसी को विशेष तैयारी करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
बोदरी-एक छोटा सा गाँव, पागा-पगड़ी,बर-के कारण


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