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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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बारा बाँभन तेरा चूल्हा।
बारह ब्राह्मण, तेरह चूल्हे।
ब्राह्मणों में छुआछूत की पराकाष्ठा।
ब्राह्मणों में यह पाया जाता है कि वे अपनी ही जाति के लोगों के साथ इतना अधिक भेदभाव और छूआछूत मानते हैं कि जितने ब्राह्मण होते हैं, उससे अधिक चूल्हे जलाए जाते हैं,ताकि एक का स्पर्श किया हुआ भोजन दूसरे को न मिले।
बारा-बारह, बांभन-ब्राम्हण

बासी के नून नइ हिटै।
बासी का नमक नहीं निकलता।
बासी खाने में नामक डालने पर वह उसमें घुल जाता है, जिससे उसे पुनः वापस नहीं लिया जा सकता।
किसी की प्रतिष्ठा चली जाए, तो वह वापस नहीं आ सकती है, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
नून-नमक, नइ-नहीं, हिटै-निकलना, बासी-एक प्रकार का व्यंजन जिसे रात के पक चांवल में पानी डालकर बनाया जाता है

बिगरे बात के तना-नना।
बिगड़ी बात इधर-उधर हो जाती है।
जब कोई काम बिगड़ना होता है, तब उसमें इधर-उधर से अनेक व्यवधान आते हैं।
एक तरफ काम को बिगड़ते देखकर तथा दूसरी तरफ बाधाओं को पड़ते हुए देखकर यह कहावत कही जाती है।
बिगरे-बिगड़ी, तना-नना-इधर-उधर

बिन देखे चोर भाई बरोबर।
बिना पैसा वाला नाव पर पहले चढ़ता है।
चोर को जब तक चोरी करते हुए पकड़ न लिया जाए, तब तक वह भाई के समान ही होता है।
भले ही आप जानते हों कि उसने चोरी किया है, पर जब तक उसे चोरी करते रंगे हाथों पकड़ न लें, तब तक आरोप नहीं लगा सकते, कुछ ऐसे ही परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
बिना-बिना, देखे-देखना, बरोबर-बराबर

बिन पैसा के आगू डोंगा चढ़े।
बिना पैसा वाला नाव पर पहले चढ़ता है।
जिस व्यक्ति के पास पैसे नहीं है, वह किसी की परवाह किए बिना नाव को तैयार देखकर उसमें बैठ जाता है। नाव चलने के बाद पैसा न मिलने पर भी नाविका न तो उसे उतार ही सकेगा और न नाव वापस लाएगा।
अनाधिकारी व्यक्ति की किसी कार्य को करने की उतावली को देखकर यह कहावत कही जाती है।
बिन-बिना, आगू-आगे, डोंगा-नांव, चढ़े-चढ़ना

बिन रोए दाइ दूध नइ पियावै।
बच्चे के रोए बिना माँ दूध नहीं पिलाती।
बिना माँगे कोई वस्तु नहीं मिलती।
आवश्यकता की कोई वस्तु किसी से माँगने पर ही मिलती है। यदि कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता की वस्तु किसी से न माँगे और उसे पाने की इच्छा व्यक्त करे तो यह कहावत कही जाती है।
बिन-बिना, रोए-रोना, दाइ-मां, नइ-नई, पियावै-पिलाना

बिना करम काम नइ होय।
बिना भाग्य के कोई काम नहीं होता।
कार्य में किस्मत का हाथ होता ही है।
जब कोई व्यक्ति किसी काम को करता है और वह काम पूरा नहीं हो पाता, तब वह अपनी असमर्थता प्रकट करने के लिए इस कहावत का सहारा लेता है।
करम-कर्म, नइ-नहीं

बिया त बिया, नइ त बाँझ पर।
या तो बच्चे पैदा करो या बाँझ पड़ो।
काम करना है तो करो नहीं तो नहीं
जब कोई व्यक्ति किसी को तत्काल काम करने के लिए बाध्य करता है, तब यह कहावत कही जाती है।
नइ-नहीं

बियावै तउन ललावै, परोसी लइका खेलावै।
जो बच्चा पैदा करे वह तरसे और पड़ोसी बच्चा खिलाए।
कई बार मेहनत का फल कोई और ले लेता है।
मेहनत कोई और करे तथा फल का उपभोग कोई और करे, तब मेहनत करने वाले को फल के उपभोग से वंचित देखकर यह कहावत कही जाती है।
बियावै-पैदा करना, तउन-वह, ललावै-ललचाना, परोसी-पड़ोसी, लइका-बच्चा, खेलावै-खेलाना

बिलइ के भाग माँ सींका टूटै।
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा।
छींके के टूट जाने से उसमें रखा दूध-दही बिखर गया, जिसे पास में बैठी बिल्ली को खाने के लिए मिल गया। वह छींका जैसे बिल्ली के भाग्य से ही टूटा हो।
जब किसी व्यक्ति को अचानक कोई लाभ मिल जाए, तबयह कहावत कही जाती है।
बिलइ-बिल्ली, सींका-सींक, टूटै-टूटना


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