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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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पेट परै गुन देही।
पेट में पड़ने से गुण करेगा।
यदि भूख न हो, तो कुछ खा कर बाहर जाने से वह समय-कुसमय में भी काम आ जाता है। माता अपने बेटे को अधिक से अधिक खाना खिलाना चाहती है। बेटे को भूख न होने पर भी उसकी माँ इस कहावत के प्रयोग से भोजन करने का कारण बता देती है।
कुछ खाकर बाहर जाने के लिए यह कहावत कही जाती है।
परै-पड़ना, गुन-गुण, देही-देना

पेट बोज अउ मोट बाँध।
पेट भर खाना और गठरी बाँधना।
भरपेट खाने के बाद बाँधकर ले जाना।
ऐसे व्यक्ति जो किसी के घर में रहकर खूब गुलछर्रे उड़ाते है और जाते-जाते बहुत कुछ अपने साथ भी ले जाते हैं, उन के लिए वह कहावत कही जाती है।
बोज-खाना, अउ-और, मोट-गठरी, बांध-बांधना

पेट भरै न पुरखा तरै।
पेट भरे न पुरखा तरे।
इतने कम भोजन से न तो खाने वाले का पेट भरेगा और न ही पुण्य लाभ होने से पूर्वज कृतार्थ होंगे।
यदि कोई व्यक्ति थोड़ा सा खाने के लिए देता है, तब यह कहावत कही जाती है।
पुरखा-पूर्वज, तरै-तृप्त होना

पेट माँ बाबू च बाबू, बिन डौका के का करौं।
पेट में बच्चे ही बच्चे हैं, बिना पति के क्या करूँ।
किसी स्त्री को ऐसा लगता है कि उसके बहुत बच्चे हो सकते हैं, परंतु पति न होने के कारण उसके बच्चे नहीं हो सकते।
किसी व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति यदि कोई कार्य करने के संबंध में सलाह दे, तो वह व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग करके अपना आशय स्पष्ट करता है कि उसकी अनेकानेक इच्छाएँ हैं, वह बहुत कुछ कर सकता है, परंतु पैसे के बिना नहीं कर सकता।
बाबू-बच्चा, च-और, बिन-बिना, डौका-पति, करौं-करूं

पेट ले परमेश्वर।
पेट से परमेश्वर।
भूखे भजन न होइ गोपाला' के समानांतर यह कहावत है। भगवान का ध्यान भूखे पेट नहीं हो सकता। पेट भरने के बाद ही भाँति-भाँति की बातें सुझती हैं। भूखे व्यक्ति को केवल भूख मिटाने की चिंता होती है।
मजदूरी कर के उदर पोषण करने वाले को तीर्थ यात्रा करने की बात कहने पर वह इस कहावत का प्रयोग करता ह।
ले-से

पैधे गाय, कछारे जाय।
बार-बार एक ही जगह जाने वाली गाय कछार ही जाती है।
कछार में हरी-हरी घास खाने वाली गाय जब भी घर से निकलती है, सीधे कछार जाती है। मुफ्त का माल खाने की आदत पड़ जाने पर व्यक्ति बार-बार उसी जगह जाता है, जहाँ उसे खाने को मिलता है।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे लोगों के लिए किया जाता है, जो बार-बार एक ही जगह जाकर फायदा उठाते हैं।
पैधे -बार बार एक ही जगह जाने की आदत, कछारे-कछार, जाय-जाना

पैसा के पौवा भर, अधेला के झौंहा भर।
पैसे में पाव भर, अधेले में टोकरी भर।
कभी-कभी उपयोगी चीज कम पैसों में ज्यादा मात्रा में मिल जाती है।
जब कोई वस्तु पैसों से कम मात्रा में तथा बिना पैसों के अधिक मात्र में मिले, तब यह कहावत कही जाती है।
झौंहा-टोकरी

पैसा न कौड़ी, हुदक दे लौठी।
पैसे -कौड़ी नहीं, लाठी से धक्का देता है।
जिस व्यक्ति के पास पैसे न हों, उसे दूसरे किसी से लड़ाई नहीं करनी चाहिए, परंतु यदि ऐसा व्यक्ति किसी को जबरदस्ती मारता है, तो वह अपने नंगेपन का परिचय देता है। वह आगे आने वाली उलझनों की चिंता नहीं करता, क्योंकि किसी अमीर का प्रश्रय रहता है, जिसके कहने पर वह झगड़ा करता है। किसी गरीब व्यक्ति के अकारण झगड़ा मोल लेने में कोई राज छिपा होता है।
जब कोई गरीब व्यक्ति किसी बड़े आदमी का जान-बूझकर नुकसान करता है, तब उसके पीछे रहस्य को स्पष्ट करने के लिए यह कहावत कही जाती है।
हुदक-धक्का देना, लौठी-लाठी

पोंडा पाँव ऊँच कपार, तउन खाय अपन भतार।
पोले पैर तथा ऊँचे मस्तक वाली स्त्री अपने पति को खा जाती है।
जिस स्त्री के पैर के नीचे चलते समय रिक्त स्थान दिखलाई पड़े तथा उसका ऊँचा कपाल हो, उसका पति जल्दी मर जाता है। स्त्रियों के ये कुलक्षण हैं। शादी-ब्याह के पूर्व किसी लड़की को देखते समय इन कुलक्षणों को ध्यान में रखा जाता है।
जिस लड़की में ऐसे लक्षण हों, उसे बहू न बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है।
पोंडा-पोला, पांव-पैर, ऊंच-ऊंचा, कपार-मस्तक, तउन-वह, खाय-खाना, अपन-अपना, भतार-पति

पोंसे डिंगरा खरही माँ आग लगावे।
दूसरों के द्वारा पाला-पोसा व्यक्ति खरही में आग लगाता है।
किसी दूसरे के बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा किया। यदि वह अपने पालक के इकट्ठा किए हुए धान के पौधों में आग लगा दे, तो वह कृतघ्न है।
ऐसा व्यक्ति, जिसने कभी किसी बच्चे को अत्यधिक स्नेह दिया हो, यदि वह बड़ा हो जाने पर अपने पालक का अहित करे, तो यह कहावत कही जाती है।
डिंगरा-किसी का बच्चा, जिसे दूसरे व्यक्ति ने पाला हो, खरही-काटकर एकत्रित किए गए पके धान के पौधे


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