हल चलाने वाले व्यक्ति को हल ले जाना पड़ता है, इसलिए वह उसके वजन की और ध्यान नहीं देता, परंतु तुतारी को रखना उसके लिए भार-स्वरूप हो जाता है।
किसी निकटस्थ रिश्तेदार को घर में रखना भार-स्वरूप नहीं होता, परंतु उस रिश्तेदार के रिश्तेदारों को (भले ही उन पर नाम-मात्र का खर्च हो) रखना भार-स्वरूप हो जाता है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
नांगर-हल, तुतारी-जानवरों को हांकने की लाठी जिसके सिरे पर कील लगी होती है, गरू-वजन
नाचे ल आवे नहीं, मँड़वा ला दोस दे।
नाच ना आवे और मंडप को दोष दे।
अपनी गलती न समझकर दूसरों की गलती बताना मूर्खता है।
इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब कोई व्यक्ति स्वयं किसी काम को नहीं समझता और अपने बिगड़े काम के लिए दूसरों को दोष देता है।
नहिं-नहीं, मंड़वा-मंडप, दोस-दोष
नानकुन टूरी के दू लुगरा, तभो ले ओखर पीठ उघरा।
छोटी लड़की है, दो साड़ी पहनी है, परंतु पीठ ढक नहीं पाती है।
छोटी-सी लड़की दो सड़ियाँ पहनी है, तब भी वह अपने अंगों को ढक नहीं पाती।
जब किसी साधारण व्यक्ति को बहुत सा देने पर भी उसकी इच्छा पूर्ण नहीं होती, तब यह कहावत कही जाती है।