जो न हगता है औऱ न घूरा छोड़ता है, वह दूसरों के लिए बाधक है। उसके घूरा छोड़ने से कम से कम दूसरे लोगों को हगने का मौका मिलेगा।
जो व्यक्ति न तो स्वयं कुछ करता है ओर न ही दूसरों को करने देता है, उस के लिए यह कहावत कही जाती है।
हगै-मल त्याग करना,धुरवा-घूरा
नकटा के नाक कटै, सवा हाँत बाढ़ै।
नकटे की नाक कटी, परंतु वह सवा हाथ बढ़ गई।
ऐसा व्यक्ति जिस पर दूसरों की बात का असर न हो।
ऐसा निर्लज्ज व्यक्ति जिस पर अन्य लोगों की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वह उल्टे और निर्लज्जतापूर्वक कार्य करता है, तब ऐसे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है।
हांत-हाथ, बाढ़ै-बढ़ना
नकटा के नाक माँ रूख जामै, कहै मोला छैंहा हे।
नकटे की नाक पर वृक्ष उगा, वह कहता है, मुझे छाया मिली।
निर्लज्ज व्यक्ति को निर्लज्जता प्राकृतिक संकटों के आने पर भी दूर नहीं होती। निर्लज्जता की नाक पर यदि वृक्ष पैदा हो जाए, तो वह बेशर्मो से कहता है कि उसे छाया ही मिला।
बेशर्म को लज्जित करने पर वह और बेशर्म हो जाता है। ऐसे घोर बेशर्म लोगों के लिए इस कहावत का प्रयोग होता है।
रूख-वृक्ष, जामै-उगना, मोला-मेरा, छैंहा-छाया
नकटा बूचा, सबले ऊँचा।
नकटा बूचा, सबसे ऊँचा।
नकटे और कनकटे व्यक्तियों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा मान-मर्यादा का ध्यान कम रहता है। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने में मान-मान-मर्यादा का ध्यान कम रहता है। ऐसे लोग किसी भी कार्य को करने में मान-मर्यादा का ध्यान नहीं रखते, इसलिए किसी बुरे कार्य में ये पहले दिखाई पड़ते हैं।
अंग-भंग व्यक्तियों की धूर्तता को देखकर यह कहावत कही जाती है।
बूचा-जिस के कान कटे हो, सबले-सबसे
नकटी के लगन, नौ सौ वियोग।
नकटी के लगन में नौ सौ बाधाएँ।
भाग्य हीन लोगों के कार्य में अनेक विघ्न आते हैं।
किसी अभागे व्यक्ति के शुभ कार्यो में अमंगल होते दिखलाई पड़ने पर इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
वियोग-बाधाएं
नख के लागत ले, नहन्नी नइ लगाँय।
नख के लगते तक नहन्नी की क्या आवश्यकता।
सरलातापूर्वक कार्य का संपन्न हो जाना।
जब कोई काम सरलतापूर्वक हो सकता है, तब उसके लिए विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता नई रहती।इस बात को पुष्ट करने के लिए यह कहावत कहीं जाती है।
नहन्नी-नख काटने का औजार
नंगरा के नौ ठन नांगर, देखबे त एको नहिं।
नंगे के पास नौ हल, परंतु देखने पर एक भी नहीं।
नंगा व्यक्ति अपनी प्रशंसा के लिए अपने पास नौ हल होने की बात कहता है, परंतु उस के पास एक भी हल नहीं होता।
नंगे लोगों की बेबुनियाद बातों के लिए यह कहावत कही जाती है।
नगरा-नंगा, नांगर-हल, एको-एक भी, नहिं-नहीं
नवा नौ दिन, जुन्ना सब दिन।
नया नौ दिन, पुराना सब दिन।
नई वस्तु की नवीनता अस्थाई होती है और पुरानी वस्तु नष्ट होते तक साथ देती है।
किसी नई वस्तु और पुरानी वस्तु के संबंध में यह कहावत कही जाती है।
जुन्ना-पुराना
नवा बइला चिकिन सींग, नाच रे बइला टींगे टींग।
नए बैल के चिकने सींग, नाच रे बैल टींग-टींग।
नए बैल को कितना काम करना है, इसका उसे अंदाज नहीं होता। वह काम शुद्ध करते ही उसमें पूरी शक्ति लगा देता है। उसे तेजी से काम करते देखकर यह समझा जाता है कि ऐसा उस के नएपन के कारण हो रहा है।
जो व्यक्ति नया-नया कोई कार्य करता है, वह विशेष जोश के साथ उसे करता है। उस के कार्य-कलाप के लिए यह कहावत प्रयुक्त होती है।
नव-नया, बइला-बैल, चिकन-चिकना
नहिं निदान माँ नाती भतार।
पति के न रहने पर नाती ही पति।
जिस स्त्री का पति न हो, वह निराश्रित हो जाती है। ऐसी बूढ़ी स्त्री अपने नाती को ही अपना पति कहती है, जिस के द्वारा उसका भरण-पोषण होता है।
बिलकुल निराश्रित रहने की अपेक्षा किसी का सहारा लेकर रहना अच्छा है। ऐसे परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।