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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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डौकी के रेंगना देख ले, फेर रँधना देखबे।
स्त्री की चाल देख लो, फिर खाना पकाना देखना।
किसी स्त्री के चलने से यह मालूम हो जाता है कि वह कैसी है। उसकी चाल से यह पता लग जाता है कि वह खाना कैसा बनाएगी। चंचल स्त्री का काम अच्छा होगा और मंद स्त्री का कार्य ढीला-ढाला होगा।
किसी स्त्री के स्वभाव का पता उस के चलने की गति से हो जाता है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती है।
डौकी-पत्नी, रेंगना-चलना, रंधना-खाना बनाना, देखबे-देख लेना

डौकी टमरे कन्हिया, अउ महतारी टमरे पेट।
स्त्री कमर टटोलती है और माँ पेट टटोलती है।
स्त्री अपने पति की कमर टटोलती है, जिससे वह उसकी शक्ति जानना चाहती है और माँ बच्चे के पेट को देखती है कि उसका बच्चा भूखा तो नहीं है।
पत्नी का प्रेम स्वाथर्वश होता है, परंतु माँ का प्रेम निःस्वार्थ होने से श्रेयस्कर माना है। इसी परिपेक्ष्य में यह कहावत कही जाती ह।
डौकी-पत्नी, टमरे-टटोलना, कन्हिया-कमर, अउ-और, महतारी-मां


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