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Chhattisgarhi Kahawat Kosh

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खाए के आन, देखाए के आन।
खाने का दूसरा तथा दिखाने का दूसरा।
हाथी के दाँत दो प्रकार के होते हैं- एक दिखाने के और दूसरे खाने के।
जो व्यक्ति कहते कुछ हैं और करते कुछ और हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
आन-दूसरा, देखाए-दिखाए

खाय गहूँ के गादा, बिसर गे दाई-ददा।
गेहूँ की रोटी खाने को मिलने पर माँ-बाप भी भुला दिए जाते हैं।
यदि किसी व्यक्ति को कहीं बढ़िया खाना मिल जाए, तो वह माँ-बाप को भूल कर वहीं टिक जाता है।
परदेश में सुखी जीवन-यापन करने वाले व्यक्ति के द्वारा स्वदेश को भुला देने पर यह कहावत कही जाती है।
खाय-खाना, गहूं-गेहूं, गादा-आटा, बिसर-भूल, दाई-माता, ददा-पिता

खाय बर खरी, बताय पर बरी।
खाने के लिए खली, बताने के लिए बड़ी।
खली की सब्जी खाकर बड़ी की सब्जी बताने वाले असलियत को छिपाते हैं।
अपनी गरीबी को छिपाकर बड़प्पन का प्रदर्शन करने वाले ढोंगी होते हैं, ऐसे व्यक्तियों के लिए यह कहावत चरितार्थ होती है।
खरी-खली, बरी-बड़ी, हर-के कारण, बताय-बताना

खावय तउन ओंठ चाबय, नइ खाय तउन जीभ चाँटय।
जो खाए, सो होंठ काटे, जो न खाए, सो जीभ चाटे।
खाने वाला घटिया चीज खाकर पछताता है और न खाने वाला उसका मजा न पाने के कारण पछताता है। तब किसी काम को करने वाले और उसे न करने वाले दोनों को नुकसान होता है।
जब किसी काम को करने वाले और उसे न करने वाले दोनों को नुकसान होता है, तब यह कहावत कही जाती है।
ओंठ-होंठ, चाबरय-चबाना, नइ-नहीं, चांटय-चांटना

खीरा के चोरी माँ, फाँसी के सजा।
ककड़ी की चोरी, और फाँसी की सजा।
अपराध छोटा और दंड बहुत बड़ा।
यदि कोई व्यक्ति छोटी-मोटी गलती कर बैठे, तो वह क्षम्य होता है। परंतु उस गलती को बड़ा अपराध मानकर जब उस व्यक्ति को कठोर दंड दिया जाए, तब यह कहावत कही जाती है।
खीरा-ककड़ी

खीरा चोर जोंधरी चोर, धीरे-धीरे सेंध फोर।
ककड़ी और भुट्टे चुराने वाला व्यक्ति आगे सेंध लगाता है।
प्रारंभ में ककड़ी और भुट्टे की चोरी करने वाला व्यक्ति बाद में दीवार में छेद करने लगता है।
ऐसे व्यक्ति जो बुराई में लगातार बढ़ते जाते हैं, उन के लिए यह कहावत कही जाती है।
जोंधरी-भुट्टा, सेंध-दीवार में छेद करना, फोर-फोड़ना

खीरे बेपारी गेरू लादै।
जिसकी पूँजी घट गई हो, ऐसा व्यापारी गेरू ही लाद लेता है।
जब किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अधिक खराब हो जाती है, तब वह निम्न स्तर का कार्य करने लग जाता है, जिससे वह लोगों की सहानुभूति का पात्र हो जाता है।
किसी धनी व्यक्ति को धनाभाव के कारण छोटे-मोटे कार्य करते देखकर यह कहावत कही जाती है।
खीरे-जिसकी पूँजी घट गई हो, बेपारी-व्यापारी, लादै-लादना

खुल-खुल हाँसे कुम्हरा के पूत, कबले करवट लेहै ऊँट।
कुम्हार का लड़का प्रसन्न होकर हँसता है, परंतु उसका साथी (रूई वाला) सोचता है कि ऊँट कब करवट बदलेगा।
रूई वाले के नुकसान से कुम्हार का पुत्र प्रसन्न होता है। रूई वाला उसे हँसते देखकर सोचता है कि ऊँट यदि करवट बदले, तो उसके भी मिट्टी के बर्तन फूट जाएँगें, जिससे उसकी हँसी बंद हो जायेगी।
दूसरों की नुकसानी देखकर प्रसन्न होने वाले व्यक्तियों के लिए यह कहावत कही जाती है।
हांसे-हंसना, पूत-लड़का, कबले-कब, लैहै-लेगा

खेढ़ा साग बुढ़वा मन के।
खेढ़े की सब्जी बूढ़ों की।
दाँत न होने पर भी बूढ़े लोग खेढ़े को चूस सकते हैं। यह सब्जी शक्तिवर्धक नहीं होती, अतः इसे लोग पसंद न करते हुए कह देते हैं कि यह बूढों के लिए है।
किसी घटिया वस्तु को स्वयं पसंद न कर के परिवार के अन्य लोगों को देने पर यह कहावत कही जाती है।
खेढ़ा-एक प्रकार की सब्जी, साग-सब्जी, बुढ़वा-बूढ़ा

खेत चरे गदहा, मार खाय जोलहा।
गदहा खेत चरता है और जुलाहे को मार पड़ती है।
हानि कोई और करे तथा दंड कोई और भोगे।
इस कहावत का प्रयोग ऐसे अवसर पर होता है, जब अनुचित कार्य कोई और करता है तथा उसका दंड किसी और को भोगना पड़ता है।
गदहा-गधा, जोलहा-जुलाहा


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