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Paribhasha Kosh (Arthmiti, Janankiki, Ganitiya Arthshastra Aur Aarthik Sankhyiki) (English-Hindi)
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Orthogonal matrix
लांबिक आव्यूह
यदि A एक m x n कोटि का आव्यूह हो और m≥n हो तब यदि इसके भीतर एक ऐसा लांबिक आव्यूह B बन सकता हो, जिसकी कोटि m x n के बराबर हो और यदि BA=( ) हो तथा T ऊपरी त्रिकोण का आव्यूह हो और इसकी कोटि n और o तब हम कह सकते हैं कि इसमें (m-n)×n कोटि का एक ऐसा आव्यूह है जिसमें केवल शून्य होंगे। इस प्रकार के आव्यूह को लांबिक आव्यूह कहा जाता है।

Orthogonal transformation
लांबिक अंतरण
किसी रैखिक अंतरण Y=Cx को तब लांबिक कहा जाता है, जब Cc=1 तथा /c/² =1 हो।
इस प्रकार का अंतरण ध्युत्क्रमणीय होता है। इसका तात्पर्य यह है कि C के पंक्ति सदिश एक दूसरे से लांबिक हैं और उनकी लंबाई 1 है अथवा वे R^n समष्टि की o, n, b, समष्टि के बराबर हैं।

Over determined system
अतिनिर्धार्य निकाय
यदि किसी निकाय में चरों के बीच स्वतंत्र संबंधों की संख्या चरों की संख्या से अधिक हो तो यह निकाय अति निर्धार्य निकाय कहलाता है। जैसे वेलरस के सामान्य संतुलन विश्लेषण में बाजारों के संतुलन के लिए प्रत्येक माँग पूर्ति के बराबर होनी चाहिए। पर यह सिद्ध किया जा सकता है कि यदि n--1 बाजार संतुलन में है, तो nवाँ बाजार स्वतः संतुलन में होगा। इस प्रकार nवें बाजार की माँग, पूर्ति संतुलन समीकरण निकाय को अतिनिर्धार्य बना देती है। इसमें चरों और संबंधों की संख्या को बराबर रखा जाता है ताकि अद्वितीय हल (यदि कोई हो तो) प्राप्त हो सके। सामान्यतः अतिनिर्धार्य निकाय में बहुत से हलों की संभावना प्रबल होती है।

Over population
जन अतिरेक⁄अति जनसंख्या
जब किसी देश या क्षेत्र में कुछ जनसंख्या के कम होने या कुछ लोगों के चले जाने से प्रतिव्यक्ति आय उत्पादिता या रहन-सहन का स्तर बढ़ जाता है या उसके बढ़ने की संभावना होती है तब हम यह कहते हैं कि इस देश या क्षेत्र में जन अतिरेक या जनसंख्या का आधिक्य है।
ऐसी दशा में जनसंख्या इष्टतम जनसंख्या से अधिक होती है।
जन अतिरेक और जन अल्पता का संबंध किसी देश की कुल आबादी और उसके साधनों के बीच अनुपात का द्योतक होता है। यह संकल्पना देश के विकास के स्तर तथा वर्तमान प्रौद्योगिकी की स्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न समयों में बदल भी सकती है।

Parameter
प्राचल
ऐसे पद जो किसी समीकरण में स्थिर होते हैं। इनके बदलने पर फलन के वक्र की स्थिति बदल जाती है।
सांख्यिकी में प्राचलों से हमारा तात्पर्य समष्टि में बंटन के गुणाकों से होता है।

Pareto curve
परेटो वक्र
आय वितरण का अध्ययन एक विशेष प्रकार के वितरण वक्र के द्वारा किया जाता है जिसका प्रतिपादन इटली के अर्थशास्त्री परेटो ने सबसे पहले किया था।
परेटो वक्र का निर्माण संचयी बारंबातरता बंटन के आधार पर किया जाता है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि आय श्रेणी में लिए गए अंकों में से कितने लोगों की आय एक निश्चित रकम से कम नही थी। इसके आधार पर क्षैतिज अक्ष पर आय को लिया जाता है और उदग्र अक्ष पर उन व्यक्तियों की संख्या का उल्लेख किया जाता है जिनकी आय निर्धारित रकम से कम होती है|
यह वक्र एक अतिपरिवलय के आकार का होता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है-- P(y)=Ay̅α यहाँ P(y)=yα से अधिक आय वाली इकाइयों के प्रतिशत y=आय का स्तर A, α = बंटन के प्राचल ।

Partial correlation
आंशिक सहसंबंध
दो विचरों का ऐसा सहसंबंध जिसमें अन्य विचरों का प्रभाव निरस्त कर दिया गया हो आंशिक सहसंबंध कहलाता है।
जब हम दो से अधिक विचरों का अध्ययन करते हैं तो एक विचर से दूसरे विचर का एकमात्र संबंध ज्ञात करने के लिए हमें अन्य विचरों के प्रभावों को निरस्त करना पड़ता है या उनको स्थिर तथा अपरिवर्तित मानना पड़ता है।
इस प्रवृत्ति के अन्तर्गत स्वतंत्र चर तथा आश्रित चर में संबंध स्थिर या अपरिवर्तनशील रहता है। इस प्रकार तीन विचरों की स्थिति में आंशिक सहसंबंध यों होगा:-- γ_12.3=(γ_12-γ_13.γ_23)/√(〖(1-γ〗_13^2) (1-γ_23^2))

Pay-off matrix
भुगतान आव्यूह
किसी खेल में प्रत्येक खिलाड़ी के सामने चालों संबंधी निर्णय के कई विकल्प होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के विकल्प के अन्य खिलाड़ियों के विकल्पों से भिन्न-भिन्न विकल्प समुच्चय बनते हैं। प्रत्येक ऐसे विकल्प समुच्चय के लिए किसी एक खिलाड़ी को जो भुगतान मिलता है उसके आव्यूह को भुगतान आव्यूह कहा जाता है।
यदि x_1 और x_2 दो खिलाड़ी हों जिनके क्रमशः 1, 2,........n तथा 1, 2,.... m विकल्प हों, तो P_1 का भुगतान आव्यूह निम्नलिखित होगा: (TABLE)

Pearl's formula
पर्ल फार्मूला
यह फार्मूला, वास्तविक परिस्थितियों में जिनमें कि भूल-चूक करने वाले साधारण मनुष्यों द्वारा कोई प्रयोग किया जाता है जैसे, सामान्य गर्भ निरोधकों के प्रसंग में निरोध, लूप, गर्भरोधी गोलियों आदि के प्रभाव को दिखाता है।
इस फार्मूले के अंतर्गत यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है कि प्रति सौ वर्ष के पीछे किसी उपाय के प्रयोग करने पर कितनी बार उसमें विफलता मिली अर्थात् उपर्युक्त परिवार नियोजन के प्रसंग में कितनी बार ऐसे उपाय के बाद भी अकस्मात गर्भधान हुआ।
यह फर्मूला इस प्रकार लिखा जा सकता है:— R=(अकस्मात गर्भ संख्या ×1200)/(कुल प्रयोग अवधि या मास संख्या)

Period
आवर्तकाल
किसी फलन की वह अवधि जिसके बाद इसका व्यवहार दुबारा पहले जैसा हो जाता है फलन का आवर्तकाल कहलाता है।
ऐसे फलन जो एक निश्चित आवर्तकाल के बाद अपनी प्रवृति को दोहराते हैं उन्हे दोलनी फलन कहा जाता है।


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