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Definitional Dictionary of Surgical Terms (English-Hindi)
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Blood Component
रक्तघटक
रक्त में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व।

Blood Corpuscles
रुधिर-कोशिकाएँ
रुधिर-कोशिकाएँ रुधिर कणिकओं रक्त का लगभग पैंतालिस फीसदी (45%) भाग बनाती हैं। ये कणिकायें तीन प्रमुख प्रकार की होती हैं लोहिताणु, शवेताणु व विषाणु। रुधिर कणिकाओं की विशेषताओं को निम्नलिखित सारणी में सूचीबद्ध किया गया है- कोशिकाओं संख्या आकार उग्र कार्य लोहिताणु 4-8 million/mm3 120 दिन आक्सीजन व कार्बन डाई (erythrocytes) महिलाओं में आक्साइड का संवहन 5-4 million/mm3 (transport) पुरुषों में श्वेताणु 5000- 10000/mm3 (leukocytes)
दानेदार (Granular Leukcytes) (Phagocytosis) न्यूट्रोफिल 60-70 10-12 कुछ घंटों से अंतग्रहण द्वारा रोगाणुओं को इओसिनोफिल 2-4% 10-12 लेकर कुछ मारना, कुछ रसायनों का स्रावण बेसोफिल 0.5.1% 8-10 दिनों तक उदाहरण हिस्टामिन सीरोटोनिन हिस्टामिन सीरोटोनिन इन्टरल्यूकिन, हिपेरिन आदि। प्रतिरक्षा क्रियाओं (immune responses) का संपादन। दानेरहित (Agranular leukocytes) लिंफोसाइट्स 20-25% 7-15 मोनोसाइट्स 3-8% 14-19 विवाणु कणिकाएँ 250000- 2-4 5-9 दिन रक्त जमाव (Blood Cloting) (Platelets) 40000/mm3

Blood Donor
रक्त दाता
सैद्धान्तिक रूप से (By medical standard) प्रत्येक व्यक्ति रक्त दान नहीं कर सकता। इसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्न हैं-
-दाता के रक्त में किसी भी किस्म के रोगाणु (eg. HIV, Hepatitis B etc) नहीं होने चाहिये।
-दाता को किसी भी अन्य गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं होना चाहिए। प्रभावित नहीं होना चाहिये। -अति वृद्ध व अवयस्कों से रक्तदान नहीं करवाना चाहिये। -दाता ने तीन महीने के अंदर के कोई और रक्त-दान न किया हो। -स्वैच्छिक रक्त दाताओं (voluntary donors) का रक्त ही लेना चाहिये। -व्यवसायिक (Professional donors) का रक्त अत्यन्त विषम परिस्थितियों में ही लेना चाहिये।

Blood Group
रुधिर वर्ग
प्रत्येक व्यक्ति का रक्त प्रत्येक को नहीं दिया जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर ग्राही व्यक्ति में कुछ विशेष प्रतिरक्षी क्रियायें (immunological reaction) प्रारंभ हो जाती हैं जो ग्राही के लिये जानलेवा (Fatal) भी हो सकती हैं। इन प्रतिरक्षी क्रियाओं की वजह प्रत्येक व्यक्ति के रक्त में उपस्थित कुछ विशेष प्रोटीन का होना है। इन प्रोटीनों को सर्वप्रथम कार्ल लैंडस्टीनर नामक वैज्ञानिक ने ढूँढा था। इन प्रोटीनों को प्रमुखतः दो रूपों से/प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है-ABO प्रकार (ABO type) Rh प्रकार (Rhtype)। दोनों प्रकार के रुधिर वर्गों में प्रोटीनों के दो उपवर्ग होते हैं- एंटीजन (antigen) जो लोहिताणुओं के सतह पर (Studded in plasma membrane of the RBCs) तथा एंटीबाडीज (antibodies) रक्त के तरल भाग प्लाज्मा में उपस्थित होता है। ये एंटीजन भी कई किस्म के होते हैं। जिनके आधार पर रुधिर वर्गों का नामकरण किया जाता है। रुधिर-आधार (Blood transfusion) करने से पूर्व रुधिर वर्ग की जांच अति आवश्यक है।

Blood Letting
रक्त-मोक्षण
रक्त को रक्त वाहिकाओं से जांच या उपचार के लिये निकालना। चिकित्सीय निदान (clinical diagnosis) को सुनिश्चित (confirm) करने के लिये अधिकांश जांचों में (blood investigation) रक्त की एक छोटी मात्रा की आवश्यकता होती है। इन जांचों में साधारणतः एक्त के कोशिकीय भाग (blood corpuscles) या इसमें उपस्थित कुछ रसायनों की मात्रा की जांच की जाती है। साधारणतः शिराओं से रक्त निकाला जाता है किंतु धमनी के रक्त में आक्सीजन सांद्रता (partial pessure of oxygen) ज्ञात करने के लिये निकाला जाता है। कुछ परिस्थितियों में रक्त की एक निश्चित मात्रा निकाल लेने से लक्षणों में आराम मिलता है। उदाहरण के लिये अतिलोहिताणुता (Polycythaemia) नामक विकृति में रक्त निकालने से कुछ आराम मिलता है। रक्तदान में भी रक्त की एक निश्चित मात्रा निकाली जाती है।

Blood Plasma
रक्त प्लाविका रुधिर प्लाज्मा
रक्त का तरल भाग जो लगभग 55% हिस्सा बनाता है। रक्त के विकेंद्रीकरण (ultracentrifugation) से कोशिकाओं व तरल भाग को अलग-अलग किया जा सकता है। इस तरल का रंग लगभग पीताभ (Straw-coloured) होता है। प्लाज्मा का लगभग 91.5% भाग जल व शेष 8.5% विलेय होता है। इन विलेय पदार्थों (Solutes) का भारानुसार अधिकांश हिस्सा लगभग 7%, प्रोटीन बनाते हैं। इन प्रोटीनों में से कुछ प्रकार के प्रोटीन शरीर के अन्य हिस्सों में भी पाये जाते हैं किंतु वे प्रोटीन जो केवल प्लाज्मा में ही पाये जाते हैं प्लाज्मा प्रोटीन कहलाते हैं। ये प्रोटीनरक्त का परासरणीय दबाव (osmotic pressure) बनाये रखते हैं जो शरीर के द्रवीय संतुलन (total body fluid balance) के लिये अति महत्वपूर्ण है। अधिकांश प्लाज्मा प्रोटीनों का निर्माण जिगर (Liver) में होता है। कुछ प्रमुख प्लाज्मा प्रोटीन हैं एल्बूमिन (Albumin) ग्लोब्यूलिन (Globulin) व फाइब्रिनोजन (Fibrinogen) आदि प्लाज्मा के अन्य विलेयों में हैं- उपसर्जी पदार्थ (यूरिया, यूरिक अम्ल क्रियेत्तिनीन, अमोनिया व बाइलीरुबिन) पोषक पदार्थ, विटामिन्स, नियंत्रक पदार्थ (जैसे एन्जाइम व अंतः स्रावी रसायन) गैसीय व विद्युत-संयोजी तत्व आदि।

Blood Platelets
रक्त बिंबाणु जिनकी रक्तस्राव को रोकने में विशेष भूमिका होती है। रक्त का वह कोशिकीय भाग (cellular fragment) जो रक्त के जमने में (blood cloting) में सहायता करता है और इस तरह रक्त स्रावण गति को कम करता है। प्रत्येक विंबाणु चकत्ती के आकार (disc shaped) होता है। जिसका व्यास 2-4m होता हैं, इसके कोशिकीय द्रव (gloplasm) में अनेक कणिकाएं (granules) होती हैं किंतु केंद्रक (nucleus) का अभाव होता है। रक्त में इनकी संख्या लगभग 2,50,000 - 4,00,000/mm3 होती है। इनका निर्माण अस्थि मज्जा (Bone-marrow) की मेगाकैरियोसाइट्स (Megakaryocytes) नामक कोशिकाओं के विखण्डन (Fragmentation) से होता है। इनकी कणिकाओं में ऐसे रसायन होते है जो बाहर निकलने पर रक्त को जमा देते हैं। इसके अलवा विंबाणु चोट खायी (Demaged) रक्त वाहिकाओं की भी मरम्मत (Repair) करती है। विंबाणुओं का जीवन छोटा होता है साधारणत; पाँच से नौ दिन। वृद्ध और मृत विंबाणु प्लीहा व जिगर द्वारा रक्त परिसंचरण से बाहर कर ली जाती हैं।

Blood Pressure
रक्त दाब, रक्त चाप
रक्त वाहिकाओं की दीवारों में रक्त द्वारा आरोपित दबाव। इस दबाव का मुख्य निर्धारक (generator) हृदय की धड़कनशीलता (Pumping action) व रक्त का द्रवीय दाब (hydrostatic pressure) है। साधारणतः धमनियों के दाब को ही रक्त दाब कहते हैं। एक युवा मनुष्य की महाधमनी में संकुचनावस्था (Systolic phase) में रक्त दाब (aorta) 120 mm Hg तक तथा आरामावस्था (Diastolic phase) में 80 mm Hg तक होता है। रक्त-दाब, हृदय गति (Heart-rate) व प्रति धड़कन आयतन (stroke volume) के अनुसार परिवर्तित होता है। इसके अलावा परिसंचरित रक्त के आयतन के परिवर्तित होने पर भी रक्त-दाब परिवर्तित होता है। महाधमनी से अन्य छोटी धमनियों, केशिकाओं (capillaries) व शिराओं में रक्त-दबाव क्रमशः कम होता जाता है। शिराओं व धमनियों में दबाव के इस अंतर की वजह से ही कोशिकाओं से छनने की प्रक्रिया होती है तथा वाहिकाओं से पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों व गौसों का आदान-प्रदान संबंधित उत्तकों में होता है। सामान्य युवाओं में सिस्टोलिक रक्त-दाब 100- 140 mm Hg के बीच तथा डायस्टोलिक रक्त-दाब 60-90 mm Hg के। मध्य होना चाहिये। इस निर्धारित सीमा (Normal range) से ऊपर के रक्त दाब को उच्च रक्त चाप (Hypertension) तथा कम को निम्न रक्त चाप (Hypotension) कहते हैं। उच्चरक्त-चाप सामान्यतः वाहिकाओं के दीवारों के कड़े हो जाने से (Arterosclerosis) आरटीरियोस्कली रोसिस मानसिक तनाव से धूम्रपान से व अंतःस्रावी अनियंत्रण से होता है। निम्न रक्त-चाप सामान्यतः अत्याधिक रक्तस्राव (Cardiac problem), हृदयरोगों (Dehydration) या पानी की कमी से हो सकती है।

Blood Serum
रक्तसीरम
रक्त के स्कंदन (clotting) के पश्चात प्राप्त होने वाला पीताभ द्रव। रक्त प्लाज्मा व सीरम में केवल स्कंदन सहायक प्रोटीन (clotting proteins) का अन्तर होता है। रक्त-स्कंदन के दौरान स्कंदन सहायक प्रोटीन स्कंदित भाग (blood-clot) में रह जाते हैं अतः सीरम में स्कंदन-सहायक प्रोटीनों का अभाव होता है। कुछ रक्त-जांचों (Blood investigations) में पूर्ण रक्त का नहीं बल्कि रक्त-सीरम का उपयोग किया जाता है क्योंकि ऐसी जांचों की सुग्राहिता (Senstivity & Specificity) में रक्त के अन्य अवयव बाधा डाल सकते हैं।

Blood Shot
नेत्र रक्ताधिक्य
नेत्र में रक्त की अधिकता का होना।


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