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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अंकित
वि.
[सं. अंक]
वर्णित।

अंकुर, अँकुर
संज्ञा
[सं.]
अंखुआ, गाभ।
(क) ग्वालनि देखि मनहिं रिस काँपै। पुनि मन मैं भय अंकुर थापै-५८५। (ख) अदभुत रामनाम के अंक। धर्म अँकुर के पावन द्वै दल मुक्ति-वधू ताटंक---१-९०

अँकुरनो, अँकुरानो
क्रि. अ.
[सं. अंकुर]
अंकुर फोड़ना, उगना, उत्पन्न होना।

अंकुरित
वि.
[सं. अंकुर]
अंखुवाया हुआ, जिसमें अंकुर हो गया हो।

अंकुरित
वि.
[सं. अंकुर]
उत्पन्न हुए, उगे, प्रकटे।
(क) अंकुरित तरु-पात, उकठि रहे जे गात, बन-बेली प्रफुलित कलिनि कहर के-१०-३०। (ख) फूले फिरैं जादौकुल आनँद समूल मूल, अंकुरित पुन्य फूले पछिले पहर के-१०.३४।

अंकुस
संज्ञा
[सं. अंकुश]
हाथी को हाँकने का टेढ़ा काँटा, अंकुश।
न्यारो करि गयंद तू अजहूँ, जान देहि का अंकुस मारी-२५८९।

अंकुस
संज्ञा
[सं. अंकुश]
प्रतिबन्ध, दबाव, रोक।
मन बस होत नाहिने मेरैं।…..। कहा कहौं, यह चऱयौ बहुत दिन, अंकुस बिना मुकेरैं--१-२०६।

अंकुस
संज्ञा
[सं. अंकुश]
ईश्वर के अवतार राम, कृष्ण आदि के चरणों का एक चिह्न जो अंकुश के आकार का माना जाता है।
ब्रज जुवती हरि चरन मन वै। ….। अंकुस-कुलिस-बज्र-ध्वज परगट तरुनी-मन भरमा ए-६३१।

अंकूर
संज्ञा
[सं. अंकुर]
अँखुआ, अंकुर।

अँकोर
संज्ञा
[हिं. अँकवार]
अंक, गोद, छाती।
(क) खेलत कहूँ रहौं मैं बाहिर, चितै रहहि सब मेरी ओर। बौलि लेहि भीतर घर अपने, मुख चूमति, भरि लेतिं अँकोर-३९८। (ख) झूठे नर कौं लेहि अँकोर। लावहिं साँचे नर को खोर-१२-३।


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