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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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देवनागरी वर्णमाला का आठवाँ स्वर। 'अ' और 'इ' के संयोग से बना है। कंठ और तालु से इसका उच्चारण होता है।

एचपेंच
संज्ञा
[फा. पेच]
उलझन।

एचपेंच
संज्ञा
[फा. पेच]
दाँवपेच।

एँडुआ
संज्ञा
[हिं. ऐंडना]
गेंडुरी, कुंडली, बिडुआ।

संज्ञा
[सं.]
विष्णु।

अव्य.
एक अव्यय जिसका प्रयोग संबोधन के लिए किया जाता है।

सर्व.
[सं. एषः]
यह, ये।
(क) छाँड़त छिन में ए जो सरीर हि गहि कै ब्यथा जात हरि लैन-२७६८। (ख) लोचन लालच ते न टरैं। हरि-मुख ए रंग सँग बिधे दाधौं फिरैं जरैं--२७७०।

एई
सर्व. सवि.
[सं. एष. + हिं. ही]
यह ही, ये हो।
(क) आधा बका संहारन ऐई असुर सँहारन आए-२५८१। (ख) एई माधव जिन मधु मारे--२५६८।

एऊ
सर्व. सवि.
[सं. एष. + हिं. ऊ (प्रत्य.)]
यह भी, ये भी।
ताही के मोहन विरहिनि को एऊ ढीठ करे-२८४१।

एकंग,एकंगी
वि.
[हिं. एक + अंग]
एक तरफ का, एक पक्ष का।


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