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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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ऊखरे
क्रि. अ.
[हिं. उखड़ना]
अलग हुए, छूट गये।
माड़े माड़ि दुनेरो चुपरे। वह घृत पाइ आपुहि उखरे-२३२१।

ऊखाड़ना
क्रि. स.
[हिं. 'उखड़ना' का प्रे.]
अलग करना।

ऊखाड़ना
क्रि. स.
भड़काना, बिचकोना।

ऊखाड़ना
क्रि. स.
ध्वस्त करना।

ऊखारना
क्रि. स.
[हिं. उखाडना ]
उखाडना।

ऊखेरना
क्रि. स.
[हिं. उखाड़ना]
अलग करनां छुड़ाना।

ऊचाढ़ी
वि.
[सं. उच्चाट, हिं. उचाटी]
उचाट, उदासीन, अनमनी, विरक्त।
सखी संग की निरखति यह छबि भई व्याकुल मन्मथ की डाढ़ी। सूरदास प्रभु के रस-बस सब, भवन-काज तैं भई उचाढ़ी---७१६।

ऊछाला
संज्ञा
[हिं. उछाल]
जोश, उबाल।

ऊतरानी
क्रि. अ.
[हिं. उतराना]
पाने की सतह पर तैरने लगी, उतराने लगी।
या ब्रज कौ बसिबो हम छोड्यौ, सो अपने जिय जानी। सूरदास ऊसर की बरषा, थोरे जल उतरानी-१०.३३७।

ऊतरिहै
क्रि. स.
[हिं. उतारना]
उतारेगा, पार पहुँचावेगा।
को कौरव-दल-सिंधु मंथन करि या दुख पार उतरिहै--१-२९।


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