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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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देवनागरी वर्णमाला का नवाँ स्वर। कठ और तालु से इसका उच्चारण होता है।

ऐंचत
क्रि. स.
[पुं. हिं. हींचना, हिं. ऐंचना =खींचना]
खींचता हैं।
इत-उत देखि द्रौपदी टरी। ऐंचत बसन, हँसत कौरव-सुत, त्रिभुवननाथ सरन हौं ते री-१-१५१।

ऐंचति
क्रि. स.
[हिं. ऐंचना]
खींचती है।
अपनी रुचि जित ही जित ऐंचति इंद्रिय-कर्म-गटी। हौं तिनहीं उठि चलत कपट लगि, बाँधे नैन-पटी---१-९८।

ऐंचना
क्रि. स.
[हिं. खींचना, पू. हिं. हींचना]
खींचना, तानना।

ऐंचि  
क्रि. स.
[हिं. खींचना, ऐंचना]
उखाड़ कर, खींचकर।
(क) नोरहू तैं न्यारौ कीनौ, चक्र नक्र-सीस छीनौ, देवकी के प्यारे लाल ऐंचि लाए थल मैं-८-५। (ख) नीलांबर पट ऐंचि लियो हरि मनु बादर ते चांद उतारयौ–४० ७। (ग) गहि पटकि पुहुमि पर नेक नहिं मटकियो दत मनु मृनाल से ऐंचि लीन्हे-२५९६।

ऐंछना
क्रि. स.
[स. उच्छन = चुनना]]
साफ करना, झाड़ना।
बाल में कंघी करना

ऐंठ
संज्ञा
[हिं. ऐंठना]
अकड़, ठसक।

ऐंठ
संज्ञा
[हिं. ऐंठना]
गर्व, घमंड।

ऐंठ
संज्ञा
[हिं. ऐंठना]
द्वेष, विरोध।

ऐंठति
क्रि. अ.
[हिं. ऐंठना]
टर्राती हैं सीधी तरह बात नहीं करती।
आँखियन तब ते बैर धरयौ। ....... तब ही ते उन हमहीं भुलाई गयी उतही को धाई। अब तो तरकि तरकि ऐठति हैं लेनी लेति वनाई।


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