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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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उतोई
वि.
[सं. इयत = इतना, हिं. इतो + ई (प्रत्य.)]
इतना हो, यही।
है हरि नाम को आधर। और इहिं कलिकाल नाहीं, रह्यौ विधि-ध्यौहार।…...। सकल स्रुति-दधि मथत पायौ, इसोई घृत सार----२-४।

देवनागरी वर्णमाला का पाँचवाँ स्वर। ओष्ठ इसका ऊच्चारण स्थान है।

उँगली
संज्ञा
[सं. अंगुलि]
अँगुली।

उँचाइ
क्रि. स.
[हिं. उँचोना]
उठाकर, ऊँचा करके।
सुनौं किन कनकपुरी के राइ। हौं बुधि-बलछल करि पवि हारी, लख्यौ न सीस उँचाइ---९-७८।

उँचाई  
संज्ञा
[सं. उच्च]
ऊँचापन।

उँचाई  
संज्ञा
[सं. उच्च]
बड़प्पन, महत्व।

उँचाई  
क्रि. स.
[हिं. उचाना]
उठाकर, ऊँचा करके।
बलि कहयौ बिलब अब नेकु नहिं कीजिए मंद. राचत अचल चलौ धाई। दोउ एक मन्त्र करि जाइ पहूँचे तहाँ कहयौ अब लीजिए यहि उँचाई।

उँचान
संज्ञा
[हिं. ऊँवा]
ऊँचाई।

उँचाना  
क्रि. स.
[हिं. ऊँवा]
ऊँचा करना, उठाना।

उँचाव
संज्ञा
[सं. उच्च]
ऊँचाई, ऊँचापन।


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