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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अंग, अँग
संज्ञा
[सं.]
शरीर, तन, गात्र।
(क) अमिष, रुधिर, अस्थि अँग जौलों तौलों कोमल चाम-१-७६। (ख) प्रकृति जो जाके अंग परी। स्वान पूछ को कौटिक लागे सूधी कहूँ न करी ... ३०१०

अंग, अँग
संज्ञा
[सं.]
अवयव, शरीर के भाग
( क ) गर्भबास अति त्रास मैं ( रे ) जहाँ न एको अंग-१-३२५। ( ख ) अंग-अंग-प्रति-छबि-तरंग.गति सूरदास क्यौं कहि आवे-१-६९। (ग) सकल भूषन मनिनि के बने सकल अँग, बसन बर अरुन सुन्दर सुहायौ---८.८।

अंग, अँग
संज्ञा
[सं.]
भेद, प्रकार, भाँति
दधिसुत-धर-रिपु सहे सिली मुख सुष सबै अंग नसायो-सा० ४६।

अंग, अँग
संज्ञा
[सं.]
सहायक, स्वपक्ष का।

अंग, अँग
संज्ञा
[सं.]
गोद।

अंग, अँग
मुहा.
अंग छुअत हौं :- शपथ खाता हूँ। उ.- सुर हृदय तें टरत न गोकुल अग छुवत हौं तेरौ-१०. उ०-१२४। अंग करै :- अपना ले, अंगीकार कर ले। उ.- जाकों मनमोहन अंग करै। ताकों केस खसै नहिं सिरतैं जौं जग बैर परै.-१-३७। अंग भरै :- गोद में लेती है। उ.- मुख के रेनु झारि अंचल सौं जसुमति अंग भरे-२८०३।

अंगज
वि.
[सं. अंग + ज = उत्पन्न]
शरीर से उत्पन्न।

अंगज
संज्ञा
पुत्र।

अंगज
संज्ञा
बाल, रोम।

अंगज
संज्ञा
कामदेव।


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