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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अंगजा, अंगजाई
संज्ञा
[सं.]
कन्या, पुत्री।

अंगद
संज्ञा
[सं.]
किष्किंधा के राजा बालि का पुत्र जो श्रीराम की सेना में था।

अंगद
संज्ञा
[सं.]
बाहु में पहनने का एक गहना, बाजूबन्द।
उर पर पदिक कुसुम बनमाला, अगदे खरे बिराजैं। चित्रित बाँह पहुँचिया पहुँचै; हाथ मुरलिया छाजै - ४५१।

अंगदान
संज्ञा
[सं.]
युद्ध से भागना, पीठ दिखाना।

अंगदान
संज्ञा
[सं.]
तन-समर्पण, सुरति।

अंगदान
संज्ञा
[सं.]
पीठ, पीढ़ा, आसन।
अंगदान बल को दै बैठी। मंदिर आजु अपने राधा अंतर प्रेम उमेठी---सा० १००।

अंगन
संज्ञा
[सं. अंगण, हिं. आँगन]
आंगन, सहन, चौक।
(क) विरह भयौ घर अगन कोने। दिन दिन बाढ़त जात सखी री ज्यौं कुरखेत के डारे सोने--२८९६। (ख) एक कहत अंगन दधि माड्यौ-१०५१।

अंगन
संज्ञा
[सं. अंग]
शरीर के अंग, इंद्रियाँ।
जब ब्रजचद चंद-मुख लषि हैं। तब यह बान मान को तेरी अंगन आपु न रषिहैं-सा ०९७।

अँगना
संज्ञा
[हिं. आँगन]
आंगन, सहन, चौक।
ललिता बिसाषा अँगना लिपः वो चौक पुरावो तुम रोरी-२३९५।

अंगना
संज्ञा
[सं.]
अच्छे अंगवाली स्त्री, कामिनी।


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