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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अँगिरा, अंगिरा
संज्ञा
[सं. अंगिरस]
एक प्राचीन ऋषि जिनकी गणना दस प्रजापतियों में है और जो अथर्ववेद के कर्ता माने जाते हैं। उनके पिता का नाम उरु और माता का आग्नेयी था। इनकी चार स्त्रियां थीं-स्मृति, स्वधा, सती और श्रद्धा। इनकी कन्या का नाम ऋचस् और पुत्र का मनस् था।

अंगीकार
संज्ञा
[सं.]
स्वीकार, ग्रहण।

अँगुठा
संज्ञा
[सं. अंगुष्ठ, प्रा अंगुट्‍ठ, हि अँगूठा]
अंगूठा।
कर गहे चरन अँगूठा चचो रैं -१०-६२।

अँगुर
संज्ञा
[सं. अगुल]
एक नाप जो आठ जौ के पेट की लंबाई के बराबर होती है।
अंगुर द्वै धटि होति सबनि सौ पुनि पुनि और मँगायौ---१०-३४२।

अँगुर
संज्ञा
[सं. अगुल]
एक अंगुली की मोटाई भर की नाप।

अंगुरिनि
संज्ञा
[सं. अँगुरी, हिं. उँगली]
उंगलियों में।
अंग अभुषन अँगुरिनि गोल----१०-९४।

अँगुरियनि
संज्ञा
[हिं. उँगली]
उंगलियों से।
दुहत अँगुरियनि भाव बतायौ--६६७।

अंगुरिया
संज्ञा
[सं. अँगुरी-अल्प.]
छोटी उंगली
गहे अँगुरिया ललन की, नँद चलन सिखावत---- १०-१२२।

अँगुरी
संज्ञा
[सं. अँगुरी]
उंगली।
चौथ मास कर-अँगुरी सोई-३-१३।

अँगुरीनि
संज्ञा
[सं. अँगुली]
उँगली, उँगलियों (को) (से)।
मैं तौ जे हरे हैं, ते तौ सोबत परे हैं, ये करे हैं कौनैं आन, अँगुरीनि दंत दै रह्यौ - १०-४५४


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