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Braj Bhasha Soor-Kosh (Vol-I)

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अंकम
मुहा.
[सं. अंक]
अंकम भरि - छाती से लगाकर। उ.- हँसि हँसि दौरे मिले अंकम भरि हम-तुम एकै ज्ञाति १०-३६। अंकम भर्‌यौ :- [भूत.] (स्नेहवश) छाती से लगाया, गले लगाया। उ.- (क) माता ध्रुव को अकम भर्‌यौ-४-९। (ख) कबहुँक मुरछित ह्वे नृप परयौ। कबहुँक सुत को अंकम भर्‌यौ--६-५। अंकम भरि लेइ :- अपने में लीन करती है। उ.- संत दरस कबहूँ जो होइ। जग सुख मिथ्या जानै सोइ। पै कुबुद्धि ठहरान न देइ। राजा को अंकम भरि लेइ ४-१२। अंकम लैहै :- [भवि.] गोद में लेगा। उ.- अब उहि मेरे कुँअर कान्ह को छिन-छिन अंकम लैहे २७०५।

अंकमाल, अंकमाल
संज्ञा
[सं. अंक]
आलींगन,परि रंभण, गोद, गले लगाना।
सूर स्याम बन तें ब्रज आए जननि लिए अँकमाल-२३७१।

अंकमाल, अंकमाल
मुहा.
दै अंकमाल :- आलिंगन करके, गले लगाकर, गोद लेकर। उ.- जुवति अति भई बिहाल, भुज भरि दै अंकमाल, सूरदास प्रभु कृपाल, डार्‌यो तन‍ फेरी--१०-२७५।

अँकवार
संज्ञा
[सं. अंकपालि, अंकमाल]
गोद, छाती।

अँकवार
मुहा.
अंकवार भरत :- आलिंगन करते हैं, गले या छाती से लगाते हैं। उ.- (सखा) बनमाला पहिरावत स्यामहिं. बार-बार अँकवार भरत धरि-४२९।

अंकवारि
संज्ञा
[हिं. अँकवार]
गोद, छाती।

अंकवारि
मुहा.
[हिं. अँकवार]
भरि धरौं अँकवारि :- छाती से लगा लूँ­, आलिंगन कर लूँ­। उ.- कोउ कहति, मैं देखि पाऊँ, भरि धरौं अंकवारि-१०-२७३। भरि दीन्हीं (लीन्ही) अँकवारि :- छाती से लगा लिया। उ.- (क) झूठे हि मोहिं लगावति ग्वारि। खेलत तैं मोहिं बोलि लियौं इहि, दोउ भुज भरि दीन्हीं अँकवारि-१०-३०४। (ख) बाहँ पकरि चोली गहि फारी भरि लीन्ही अँकवारि-१०-३०६। (ग) सूरदास प्रभु मन हरि लीन्हों तब जननी भरि लए अँकवारि-४३०।"
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अंकवारि
संज्ञा
[हिं. अँकवार]
आलिंगन।
नैन मूंदति दरस कारन स्रवन सब्द बिचारि। भुजा जोरति अंक भरि हरि ध्यान उर अंकवारि-७८१।

अंकित
वि.
[सं. अंक]
चिह्नित।
कनक कलस मधुपान मनौ कर भुज निज उलटि धसी। ता पर सुंदरि अंचर झाँप्यो अंकित दंस तसी-सा. उ. २५।

अंकित
वि.
[सं. अंक]
लिखित, खिचित।


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