logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

आदित्यदर्शन
अन्नप्राशन संस्कार के पश्चात् शिशु का 'निष्क्रमण' (पहली बार घर से निकालना) संस्कार होता है। इसी संस्कार का अन्य नाम आदित्यदर्शन भी है, क्योंकि सूर्य का दर्शन बालक उस दिन पहली ही बार करता है। दे० 'निष्क्रमण'।

आदित्यमण्डलविधि
इस व्रत में रक्त चन्दन अथवा केसर से बनाये हुए वृत्त पर गेहूँ अथवा जौ के आटे का घी-गुड़ से संयुक्त खाद्य पदार्थ रखा जाता है। लाल फूलों से सूर्य का पूजन होता है। दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड, 753, 754 (भविष्योत्तर पुराण 44.1-9 से उद्धृत)।

आदित्यवार
सूर्य के व्रत का दिन। जब यह कुछ तिथियों, नक्षत्रों एवं मासों से युक्त होता है तो इसके कई नाम (कुल 12) होते हैं। माघ शु० 6 को यह 'नन्द' कहलाता है, जब व्यक्ति केवल रात्रि में खाता है (नक्त), सूर्य प्रतिमा पर घी से लेप करता है और अगस्ति वृक्ष के फूल, श्वेत चन्दन, गुग्गुल धूप एवं अपूप (पूआ) का नैवेद्य चढ़ाता है (हे०, व्र० 2, 522-23)। रोहिणी नक्षत्र से युक्त रविवार 'सौम्य' कहलाता है। अन्य नाम हैं 'कामद' '(मार्गशीर्ष शु० 6); 'जय' (दक्षिणायन का रविवार); 'जयन्त' (उत्तरायण का रविवार); 'विजय' (शु० 7 को रोहिणी के साथ रविवार); 'पुत्रद' (रोहिणी या हस्त के साथ रविवार, उपवास एवं पिण्डों के साथ श्राद्ध हेतु); 'आदित्याभिमुख' (माघ कृ० 7 को रविवार, एकभक्त, प्रातः से सायं तक महाश्वेता मंत्र का जप हेतु); 'हृदय' (संक्रान्ति के साथ रविवार, नक्त, सूर्यमन्दिर में सूर्याभिमुख होना, आदित्य-हृदय मन्त्र का 108 बार जप); 'रोगपा' (पूर्वाफाल्गुनी को रविवार, अर्क के दोने में एकत्र किये हुए अर्कफूलों से पूजा); ‘महाश्वेताप्रिय’ (रविवार एवं सूर्य ग्रहण, उपवास, महाश्वेता का जप)। मन्त्र है—‘ह्रा ह्रीं सः’ इति, दे० हे० (व्रत 2, 12-23), हे० (व्र० 2,524-28)।

आदित्यवार नक्तव्रत
हस्त नक्षत्र से युक्त रविवार को इस व्रत का आचरण होता है, यह रात्रि अथवा वार व्रत है, जिसका देवता सूर्य है। एक वर्षपर्यन्त इसका अनुष्ठान होता है। दे० हेमाद्रि, व्रत खण्ड 2.538-541; कृत्य--रत्नाकर, पृ० 608--610।

आदित्यवारव्रत
इसमें मार्गशीर्ष मास से एक वर्षपर्यन्त सूर्य का पूजन होता है। भिन्न-भिन्न मासों में सूर्य का भिन्न-भिन्न नामों से स्मरण करते हुए भिन्न-भिन्न फल अर्पित किये जाते हैं। जैसे, मार्गशीर्ष में सूर्य का नाम होगा 'मित्र' और उन्हें नारिकेल अर्पित किया जायगा। पौष में 'विष्णु' नाम से सम्बोधित होंगे तथा 'बीजपूर' फल अर्पित किया जायगा। इसी प्रकार अन्य मासों में भी। दे० व्रतार्क, पत्रात्मक (375 व--377अ)। इस व्रत के पुण्य से समस्त रोगों का निवारण होता है।

आदित्यव्रत
पुरुषों और महिलाओं के लिए आश्विन मास से प्रारम्भ कर एक वर्ष तक रविवार को यह व्रत चलता है। सूर्य देवता का पूजन होता है। व्रताक (पत्रात्मक, पृ० 378 अ) में स्कन्द पुराण से एक कथा लेकर इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस प्रकार साम्ब श्री कृष्ण के शाप से कोढ़ी हो गया था और अन्त में इसी व्रत के आचरण से पूर्णरूप से स्वस्थ हुआ।

आदित्यस्तव
अप्पय दीक्षित कृत शैव मत का एक ग्रन्थ। इसके अनुसार सूर्य के माध्यम से अन्तर्यामी शिव का ही जप किया जाता है।

आदित्यशयन
हस्त नक्षत्र युक्त रविवासरीय सप्तमी, अथवा सूर्य की संक्रान्ति से युक्त रविवासरीय सप्तमी हो, उस दिन उमा तथा शङ्कर की प्रतिमाओं का पूजन विहित है (सूर्य शिव से भिन्न नहीं हैं)। इसमें देवताओं के चरणों से प्रारम्भ कर ऊपर के अङ्गों का नामोच्चारण करते हुए हस्त नक्षत्र से प्रारम्भ कर आगे के नक्षत्रों को अङ्गों के नाम के साथ जोड़ते हुए नमस्कार किया जाता है। पाँच चादरों तथा एक तकिया से युक्त शय्या तथा एक सौ मुद्राओं का दान होता है। दे० पद्मपुराण 5.24,64-93 (हेमाद्रि, व्रत खण्ड, 2.680--684 से उद्धृत)।

आदित्यशान्तिव्रत
हस्त नक्षत्र युक्त रविवार को इस व्रत का अनुष्ठान होता है। आक वृक्ष की लकड़ियों से सूर्य का पूजन विहित है (संख्या में 108 या 28)। इन्हीं लकड़ियों से हवन किया जाता है, जिसमें प्रथम मधु तथा घी अथवा दधि और घी की सात आहुतियाँ दी जाती हैं। दे० हेमाद्रि का व्रतखण्ड 537-38 (भविष्य पुराण से)।

आदित्यहृदय-विधि
रविवार को जब संक्रान्ति हो, उस दिन सूर्य के मन्दिर में बैठकर 108 बार आदित्यहृदयमन्त्र का जप और नक्त-भोजन का आचरण करना चाहिए। रामायण (युद्ध काण्ड, 107) में अगस्त्य ऋषि ने राम के पास आकर उपदेश दिया कि वे सूर्य की पद्यात्मक 'आदित्यहृदय' नामक स्तुति करें, जिससे रावण के साथ होने वाले युद्ध में विजयी हो सकें। कृत्यकल्पतरु (व्रतकाण्ड, 19-20) में उपर्युक्त कथा का उल्लेख है। एक बात स्पष्ट है कि यदि रविवार को संक्रान्ति हो तो 'आदित्यहृदय' का पाठ करना चाहिए।


logo