परिणामित्र या प्रतिघातक कुंडलियों का या षट-कुंडलियों का सममित त्रि-फेज तारा-संबंधन, जिसमें त्रिलंब क्रोड या तीन अलग-अलग क्रोडों पर दो-दो कुंडलियाँ ली होती हैं। प्रत्येक भुजा की ये दोनों कुंडलियाँ भिन्न क्रोडों पर लगी होंगी तथा इनके वि. वा. बल में फेज अंतर 60º होगा।