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Definitional Dictionary of International Law (English-Hindi)
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ratification
अनुसमर्थन, संपुष्टि यह संघि संपादन की प्रक्रिया में उसकी अंतिम कार्यवाही है । यद्यपि कुछ परिस्थितियों में यह मात्र एक औपचारिकता रह जाती है, लेकिन यह एक आवश्यक औपचारिकता हैं । संधि पर हस्ताक्षर हो जाने के उपरांत हस्ताक्षरकर्ता राज्यों की अपनी - अपनी संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुसार सक्षम अंगों द्वारा उसका अनुमोदन किया जाना आवश्यक है । इसे संधिका अनुसमर्थन या संपुष्टि कहते हैं । सन् 1969 में एक मामले में अपने निर्णय में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि संधि केवल अनुसमर्थन प्राप्त के उपरांत ही संबंधित राज्य के लिए बाध्यकारी होती है, मात्र उस पर हस्ताक्षर से नहीं ।

real union
वास्तविक संघ दो या दो से अधइक राज्यों का ऐसा संघ जो अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से एक इकाई अथवा वैधिक व्यक्ति बन जाए और जिनका अलग - अलग अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व समाप्त हो जाए, यद्यपि आंतरिक मामलों में जिनकी स्वायत्तता बनी रहे । उदाहरणार्थ 1814 - 1905 तक स्वीडन और नार्वे तथा प्रथम महायुद्ध की समाप्ति तक ऑस्ट्रिया और हंगरी के संघ इस प्रकार के राज्य के उदाहरण हैं । वैयक्तिक संघ और वास्तविक संघ मे मुख्य भेद यही है कि वैयक्तिक संघ का कोई अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तित्व नीहं होता जबकि वास्तविक संघ अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति माना जाता है ।

rebus sic stantibus
परिस्थितियों में मूलभूत परिवर्तन अंतर्राष्ट्रीय विधि और उसके व्यवहार में यह स्वीकार किया जाता है कि संधि का एक हस्ताक्षरकर्ता राज्य संधि के पुनरीक्षण अथा उसके उन्मूलन अथवा खंडन की माँग इस आधार पर कर सकता है कि उन परिस्थितियों में आमूल - चूल परिवर्तन हो गाय ह जो संधि संपादन के समय उसकी आवश्यक दशाएँ थीं और इस परिवर्तन का पूर्वाभास संधि के संपादन के समय नहीं हो सकता था । यद्यपि यह सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक सुस्थापित सिद्धआंत है और सन् 1969 के वियना अभिसमय में भी इसे स्थान दिया गया है परंतु विद्वानों का मत है कि इस सिद्धांत की व्याख्या अत्यंत सीमित अर्थों में की जानी चाहिए । यह उल्लेखनीय है कि अभी तक किसी विवाद में किसी न्यायालय द्वारा इस तर्क को स्वीकार नहीं किया गया है ।

recall
प्रत्याह्वान किन्हीं कारमों से प्रत्यायितकर्ता राज्य द्वारा अपने राजदूत को वापिस बुला लेना । जिस राज्य में वह प्रत्यायित है, उसकी सरकार द्वारा उसे अवांछनीय व्यक्ति घोषित कर दिए जाने पर भी प्रत्यायितकर्ता राज्य उसे वापिस बुला सकता है ।

reciprocity
पारस्परिकता अंतर्राष्ट्रीय विधि मूलतः स्वतंत्र और समान राज्यों के पारस्परिक संसर्ग में लागू होने वाले नियमों का समूह है । प्रायः इन नियमों की बाध्यकारिता के पीछे पारस्परिक हित अथवा पारस्परिक उपयोगिता अथवा पारस्परिक जोखिम का भाव होता है । विशेषकर युद्ध -व धि के अनेक नियमों का पालन इसी आधार पर होता है । इसे पारस्परिकता का सिद्धांत कहते हैं । अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अंतर्गत जो राज्य न्यायालय का अनिवार्य क्षेत्राधिकार स्वीकार करते हैं वे ऐसा प्रायः पारस्परिकता के आधार पर ही करते हैं । इस प्रकार पारस्परिकता अंतर्राष्ट्रीय विधि में एक महत्वपूर्ण वैधिक अवधारणा बन गई है ।

recognition
मान्यता मन्यता का शाब्दिक अर्थ स्वीकृति अथवा अनुमोदन है । अंतर्राष्ट्रीय विधि के संदर्भ में इसका व्यापक अर्थ किसी इकाई, संगठन,संधि, परिवर्तन या परिस्थिति की स्वीकृति है । परंतु संकुचित अर्थों में मान्यता का अर्थ किसी नवीन राज्य अथवा किसी राज्य में सत्ता परिवर्तन के फलस्वरूप सत्तारूढ़ हुई किसी नई सरकार को अन्य राज्यों द्वरा स्वीकृति देना है । राज्य और सरकार के अतिरिक्त मान्यता के दो और विषय हैं युद्धकारिता और विद्रोहकारिता । इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय विधि में मान्यता का अर्थ स्वीकृति है और स्वीकृति के विषय हो सकते हैं राज्य, सरकार, युद्धकारिता अथवा विद्रोहकारिता ।

recognition of an absentee government (=recognition of government - in - exile)
अन्यत्रवासी सरकार को मान्यता निर्वासित सरकार को मान्यता दोनों महायुद्धों में शत्रु के आक्रमण होने पर अनेक यूरोपीय देशों की सरकारें अन्य देशों में शरण लेने को विवश हुई । स्थानीय राज्यं द्वारा इन्हें अपने - अपने देशों की वैध सरकारों के रूप में मान्यता दी गई । ऐसी सरकारों की मान्यता को `अन्यत्रवासी सरकारों की मान्यता` कहा जात ह क्योंकि ये सरकारें अपने देशों की भूमि पर विद्यमान नहीं थीं और न ही अनपे देशों के शासन पर इनका कोई तथ्येन नियंत्रण था ।

recognition of belligerency
युद्धकारिता की मान्यता किसी देश की स्थापित सरकार के विरूद्ध संगठित, व्यापक एवं सशस्त्र विद्रोह होने की अवस्था में विद्रोहकारियों को, कुछ दशाएँ होने पर, अन्य देशों द्वारा युद्धकारियों के रूप में मान्यता दी जा सकती है जिसके फलस्वरूप इन्हें स्वतंत्र राज्यों के समान युद्धकारी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं । ये दशाएँ हैं :- (1) विद्रोहकारियों का देश के एक बड़े भाग पर वास्तविक नियंत्रण होना ; (2) विद्रोहकारियों का क सेनाधिपति की अधीनता में सुव्यवस्थित रूप से संगठित होना ; (3) इनके द्वारा युद्ध के नियमों का पालन किया जाना ; तता ऐसी दशाएँ उत्पन्न हो जाना कि विदेशों के लिए विद्रोहकारियों के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना आवश्यक हो जाए । इस प्रकार की मान्यता से तीनों पक्षों अर्थात् स्थापित सरकार, विद्रोहियों और मान्यता प्रदान कनरे वाले राज्यों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत कुछ अधिकार मिल जाते ह , जैसे - इस मान्यता से युद्ध करने वाले दोनों पक्षों को वस्तुतः (defacto) अंतर्राष्ट्रीय वैधिक स्थिति प्राप्त हो जाती है और वे विनिषिद्ध माल के लिए जहाजों की तलाशई लेकर ऐसे माल को ज़ब्त कर सकते हैं ।किंतु इस प्रकार की मान्यता बढ़ा जटिल कार्य है और तीसरे राज्यों को बड़ी समझबूझ के साथ यह पग ठाना चाहिए क्योकि विद्रोह को दबाने के कार्य में लगी सरकार ऐसी मान्यता को असामयिक, अनुचित, हस्तक्षेपकारी और शत्रुतापूर्म समझ सकत ह है ।

recognition of government
सरकार को मान्यता सामान्य रूप से अथवा संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा सरकार मं परिवर्तन हो जाने पर अन्य राज्यों द्वारा मान्यता की आवश्यकता नहीं होती । किंतु राज्य में क्रांति, विद्होह या षड्यंत्र द्वारा सरकार बदल जाने पर सत्तारूढ़ सरकार को मान्यता देना आवश्यकक होता है । मान्यता प्रदान करने वाले राज्य मान्यता देने मेंदो कसौटियों का प्रयोग करते हैं - वस्तुनिष्ठ कसौटी (objective test) तथा व्यक्तिनिष्ठ कसौटी (subjective test) पहली कसौटी के अनुसार मान्यता देने वाला देश यह देखता है कि क्या नई सरकार का राज्य के अधिकांश प्रदेश पर प्राबवशाली नियंत्रण है और वहाँ की जनता उसकी आज्ञा का पालन करती ह । दूसरी कसौटी राजनीति विचारों पर आधारित है और मान्यता प्रदान करने वाला राज्य मान्यता देने से पूर्व आश्वस्त होना चाहता है कि नई सरकार अंतर्राष्ट्रीय विधि तात संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर द्वारा प्रतिपादित दायित्वों को स्वीकार कर उनका पालन करने की इच्छआ अथवा सामर्थ्य रखती है चीन की साम्यवादी सरकार को मान्यता देने में अमेरिका ने व्यक्तिनिष्ट कसौटी को अपनाकर बहुत दिनों तक उसे मान्यता प्रदान नही की जबकि भारत, रूस आदि देशों ने वस्तुनिष्ठ कसौटी को अपनाकर उसे मान्यता प्रदान कर दी ।

recognition of insurgency
विद्रोहकारिता को मान्यता गृहयुद्ध में कुछ परिस्थितियों में विद्रोहकारियों को युद्धकारिता की मान्यता न देते हुए कुछ युद्धकारी अधिकार दिए जा सकते हैं । ऐसे अधइकार दिए जाना विद्रोहकारियों को मान्यता दिया जाना कहा जात है । यह इसलिए किया जात है कि विद्रोहकारियों को न तो युद्धकारियों की मान्यता दी जा सकती है, क्योंकि उनमें इसके लिए आवश्यक तत्वों का अभाव है और न ही उनकी पूर्णतया उपेक्षा ही की जा सकती है । अतः उन्हें तीसरे राज्य परिस्थितियों के अनुसार युद्धकारिता के कुछ अधिकार देना स्वीकार कर सकते हैं । इस स्थिति को विद्रोहकारियों को मान्यता देना कहा जाता है । स्पेन के गृहयुद्ध (1936) में राष्ट्रवादियों को ब्रिटेने ने इसी प्रकार की मान्यता दी थी । परंतु तब से अब तक इसका कोई अन्य उदाहरम नहीं मिलता ।


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