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Definitional Dictionary of International Law (English-Hindi)
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gas warfare
गैस युद्ध वह युद्ध जिसमें विषैली, श्वासावरोधक तथा अन्य प्रकार की जनसंहारकारी गैसों का प्रयोग हो । अंतर्राष्ट्रीय विधि के अन्सार गैस का इस प्रकार का प्रयोग वर्जित है । 1925 के जेनेवा प्रोटोकोल में स्पष्ट रूप से श्वासावरोधक गैस के प्रयोग पर प्रतिबंध बनाया गया ह । 1972 के इस अभिसमय के अंतर्गत जैविक एवं विषाक्त अस्त्रों के विकास, उत्पादन एवं भंडारण को वर्जित किया गया है और उनके नष्ट करने का भी प्रावधान है ।

general act
संनियम अंतराष्ट्रीय विधि के क्षेत्र मे यह औपचारिक अथवा अनौपचारिक संधि का ही पर्यायवाची है । इस शब्द का प्रयोग राष्ट्र संघ ने 1928 में स्वीकृत अंतराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान विषयक विधान के लिए किया था ।

General Agreement on Trade and Tariff (GATT)
व्यापार एवं प्रशुल्क संबंधी सामान्य समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन जिसका उद्देश्य सदस्य राज्यों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल एवं सुगम बनाना है । इसकी प्रथम बैठक जेनेवा में 1947 में हुई थी । यह सदस्य राज्यों के मध्य प्रशुल्क एवं अन्य व्यापार संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए पारस्परिक समझौते कराने में सहायता करता है । प्रारंभ में इसमें केवल 23 राज्य थे परंतु अब यह संख्या बढ़कर 100 से अधिक को गई है, जो विश्व - व्यापार के 80 प्रतिशत से अधिक का संचालन करते हैं । इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं पारस्परिक व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करना एक दसेर के प्रति विभेदकारी नीति विशेष कर सीमा - शुल्क के क्षेत्र में न अपनाना करों और सीमा - शुल्क के मामले में सर्वाधिक अनुगृहित राष्ट्रmost favoured nation) धारा का पारस्परिक व्यापारिक संबंधों में अनुपालन करना सीमा - शुल्क संबंधी औपचारिकताओं को सरल बनाना इत्यादि ।

general armistice
1. व्यापक युद्ध स्थागत 2. व्यापक युद्ध स्थगन समझौता दे. Armistice.

General Assemble
महासभा (संयुक्त राष्ट्र) यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुक अंगों में से एक है । संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य - राज्य इसके सदस्य ह ते हैं और प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधिमंजल को एक मत प्राप्त होता है । इसके अधिवेश साधारणतया प्रतिवर्ष होते हैं, परंतु इसका विशेष अधिवेशन भी बुलाया जा सकता है । इसे महत्वपूर्ण - पदों एवं समितियों के निर्वाचन का अधिकार है जिनमें महासचिव, अंतर्राष्ट्रीय - न्यायालय के सदस्य, सामाजिक और आर्थिक परिषद् के सदस्य, सुरक्षा - परिषद् के अस्थायी सदस्य शामिल हैं । यह विश्व की उन सबी समस्याओं एवं परिस्थितियों पर विचार - विमर्श कर सकत है जिनका संबंद विश्व में शांति बनाए रखने से हो । यद्यपि इसके प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते, परंतु सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के कारण संयुक्त राष्ट्र की महासभा विश्व जनमत का दर्पण मानी जाती है और इसे विश्व की संसद भी कहा जाता है ।

general disarmament
सामान्य निरस्त्रीकरण, सामान्य निःशस्त्रीकरण दे. Disarmament.

general international law
सामान्य अंतर्राष्ट्रीय विधि राज्यों के मध्य पारस्परिक व्यवाहर को नियमित करने वाले नियमों व सिद्धांतों का समूह जो सामान्यतः सभी राज्यों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं । इस प्रकार के सामान्य रूप से लागू होने वाले अंतर्राष्ट्रीय नियम उन नियमों से भिन्न होते हैं जो संसार के कुछ विशेष - क्षेत्रों में विकसित हुए हैं (जैसे लातीनी अमेरिका में) और जिन्हें क्षेत्रीय या विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय विधि कहा जाता है ।

general principle of law
विधि के सामान्य सिद्धांत सन् 1945 के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि ने सभ्य राज्यों द्वारा मान्यताप्राप्त विधि के सामान्य सिद्धांतों को भी संधियों और प्रथाओं के साथ - साथ अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक मूल स्रोत माना है । फ्रीडमैन आदि लेखकों का मत है कि यह एक ऐसा स्रोत है जिसके भविष्य में अधिकाधिक उपयोग होने की संभावनाएँ हैं । ओपेनहायम ने भी अंतर्राष्ट्रीय विदि के लि इसेके महत्व को स्वीकार किया है । विधि के सामान्य सिद्धांतों से तात्पर्य है वे सिद्धांत जो संसार की प्राधन विधि प्रणलियों में समान रूप से पाए जाते हैं और जो सारमूलक और प्रक्रियात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं । जैसे एक सारमूलक सिद्धांत यह है कि संधि की किसी व्यवस्था का पालन न करने पर क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए । इसी प्रकार एक प्रक्रियात्मक सिद्धांत यह है कि किसी न्यायिक निकाय द्वारा दिया गया निर्णय दोनों पक्षकारों के लिए बाध्यकारी है ।

Geneva Conventions
जेनेवा अभिसमय यूँ तो अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनेकानेक अभिसमयों के साथ जेनेवा का नाम जुड़ा हुआ है, परंतु 12 अगस्त, 1949 को अंगीकार किए गए चार अभिसमय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं क्योंकि इन अभिसमयों में अतंर्राष्ट्रीय विधि के उस पक्ष के विकास की परिणति प्रायः हो जाती है जिसे मानवतावादी या मानवीय अंतर्राष्ट्रीय विधि कहा जाता है । 12 अगस्त 1949 को जेनेवा में हुए सम्मलेन में निम्नलिखित चार अभिसमयों पर हस्ताक्षर हुए 1. स्थल - युद्ध में बीमार और घायलों का उपचार संबंधी अभिसमय 2. समुद्री - युद्ध में बीमार और घायलों का उपचार संबंधी अभिसमय 3. युद्धबंदियों के संग व्यावहार संबंधी अभिसमय और 4. युद्ध - काल में गैर सैनिक जनता के साथ व्यवहारि संबंधी अभिसमय । इस अभिसमयों के विषय र उद्देश्य इनके नाम् से ही स्पष्ट हो जातै हं । यह उल्लेखनीय है कि इनके द्वारा प्रतिपादित कानून सथिर नही रहा है बल्कि वह निरंतर विकासोन्मुख है । परंतु इसका केंद्र - बिंदु जेनेवा के ये चार अभिसमय ही हैं ।

Geneva Protocol
जेनेवा उपसंधि, जेनेवा प्रोटोकोल सन् 1925 मे स्वीकृत यह उपसंधि युद्ध - संचालन में जनसंहार के शस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने में एक महत्वपूर्ण प्रयास था । इसके अनुसार युद्ध में श्वासावरोधक गैसयुक्त शस्त्रों और घातक कीटाणुओं से युक्त अस्त्रों के प्रयोग को वर्जित किया गया था । 16 दिसंबर, 1969 को जेनेवा उपसंधि में आस्था प्रकट करते हुँ संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने यह घोषित किया कि किसी सशस्त्र अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष में निम्नलिखित अस्त्र - शस्त्रों का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय विधि विरोधी माना जाएगा :- 1. ऐसे रासायनिक पदार्थ वाले शस्त्र जिनका मनुष्यों, पशुओं और वनस्पतियों पर प्रत्यक्ष रूप से विषाक्त प्रभाव होता हो । 2. जैविक अस्त्र - शस्त्र जिनका उद्द्शेय मनुष्यों, पशुओं और वनस्पतियों में बीमारी फैलाना या इन्हें नष्ट करना हो और जो इस संक्रीय में स्वयं बढ़ जाने की क्षमता रखते हों । इसी उद्देश्य को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए 1972 में एक अभिसमय पर हिस्ताक्षर हुए जिसका लक्ष्य जैविकीय एवं विषाक्त शस्त्रों के विकास, उत्पादन और हस्ताक्षर हुए जिसका लक्ष्य जैविकीय एवं विषाक्त शस्त्रों के विकास, उत्पादन और भंडारण को वर्जित करना और उनके नष्ट किए जाने की व्यवस्था करना है ।


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